राजधानी जयपुर के पास के एक गांव में एक विधवा महिला की तीन बेटियों ने एक साथ आरएएस अधिकारी बन साबित कर दिया है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। गरीबी में पली—बढ़ी तीनों बेटियों ले हाल ही में राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन के राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज—आरएएस के नतीजों में सफलता हासिल की है।
यह कहानी है जयपुर के पास सारंग का बास गांव की रहने वाली कमला चौधरी, गीता चौधरी और ममता चौधरी नाम की तीन सगी बहिनों की जो अपनी मां मीरा देवी के साथ एक छोटे से घर में रहती हैं। इनके पिता का नाम गोपाल पूनिया है जिनका निधन बीमारी के कारण तीन साल पहले हो चुका है। परीक्षा में तीन सगी बहनें एक साथ आरएएस अधिकारी बनने में सफल रही हैं। अब तीनों आईएएस की तैयारी करना चाहती हैं।
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उनकी मां मीरा देवी अशिक्षित हैं और खेत-खलियान और पशुओं को पालने के अलावा कोई काम नहीं जानती है। उसे यह भी पता नहीं कि उनकी बेटियों ने क्या और कौनसी परीक्षा में कामयाबी हासिल की है। हालांकि अपनी बेटियों की सफलता पर उन्हें गर्व हैं और वह बताती है कि उनकी बेटियां बहुत होनहार हैं और उनका हर सपना वो पूरा करेंगी।
छोटे से गांव की तीनों बहिनों का नाम आज हर किसी की जुबान पर है और उनकी वजह से ही यह गांव भी चर्चा में आ गया है। किसी समय खेती और मवेशियों को पालकर किसी तरह तीनों बेटियों को बढ़ाने वाली विधवा मां को अपने नाते-रिश्तेदारों और समाज से काफी ताने सुनने पड़े थे।
लेकिन अब जो इन्हें ताने देते थे, अब अपने बच्चों को भी इन तीनों बहनों से सीख लेने को कह रहे हैं। मां की मेहनत और इन तीनों की जी तोड़ कड़ी मेहनत से ही आज इन्हें यह सफलता हासिल हुई है।
इन बहनों की कामयाबी के पीछे जितना हाथ इनकी मां का है, उतना ही इनके बड़े भाई रामसिंह का। भाई ने पिता की तरह फर्ज निभाया और अपनी बहनों को हमेशा सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान लगाने कहा है। रामसिंह ने परिवार की बाकी जरूरतों में कटौती की लेकिन बहनों की पढाई से कभी समझौता नहीं किया।