शराब के बिना ही रची मधुशाला, कुछ ऐसी ही शख्सियत थे हरिवंश राय बच्चन

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    Harivansh Rai Bachchan

    हरिवंश राय बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। आज हरिवंश राय बच्चन की जयंती है। हमारी पुरानी हिन्दी की किताबों से बगले झांकती किसी कविता या लेखन का नाम भले ही हमे याद न हो लेकिन हरिवंश राय बच्चन की लिखी कविताओं की धुंधली यादें आज भी पुराने दिन याद दिला देती हैं। दिलचस्प तथ्य है कि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जिंदगी में कभी शराब नहीं पी, लेकिन उसके बाद भी मधुशाला का पूरा जीता जागता जिक्र उन्होंने अपने कविता ‘मधुशाला’ में कर दिया।

    मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
    प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला।
    पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
    सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।

    हरिवंश राय बच्चन को सबसे अधिक लोकप्रियता 1935 में लिखी ‘मधुशाला’की वजह से मिली जो उनकी दूसरी रचना थी। हरिवंश राय की सबसे जीवंत कविताओं में से एक मधुशाला को आज भी बड़े चाव से पढ़ा जाता है।

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    हरिवंश राय बच्चन को हर क्षेत्र में लिखने की खूबी थी। जीवन के चढ़ते—उतरते उतार—चढ़ावो पर उन्होंने क्या खूब लिखा है ….

    असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
    क्या कमी रह गई, देखा और सुधार करो।
    जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
    संघर्ष का मैदान छोड मत भागो तुम।
    कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती,
    कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।

    आपको यह भी बता दें कि हरिवंश राय बच्चन का असली नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव है जिनका जन्म 27 नवम्बर, 1907 में इलाहबाद में हुआ था। एक ​कवि, एक लेखक और एक प्राध्यापक के तौर पर उन्होंने अपनी जिंदगी के 95 साल पूरे किए थे। हिन्दी के साथ अवधी भाषा में लेखक के तौर पर उन्होंने अपनी पहचान बनाई।

    1976 में उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। उनके उपनाम के बारे में हाल ही में बच्चनजी ने कौन बनेगा करोड़पति के शो पर बताया था कि अमिताभ बचपन में बड़े शरारती थे और पड़ौस के लोग उन्हें बच्चा—बच्चा कह कर पुकारते थे। इसलिए अमिताभ के उपनाम में श्रीवास्तव की जगह बच्चन जुड़ गया और यहीं से हरिवंश रायजी के नाम के साथ बच्चन जुड़ गया और आज भी वें हरिवंश राय बच्चन नाम से ही जाने जाते हैं।

    कम ही लोगों को पता है कि अमिताभ बच्चन की शानदार फिल्म और ऋतिक रोशन की सुपरहिट फिल्म की यह सुपरहिट कविता दरअसल अमिताभजी के पिता हरिवंश राय बच्चन की रचना है। इस पर जरा गौर फरमाइए …

    तू न थकेगा कभी,
    तू न रूकेगा कभी,
    तू न मुड़ेगा कभी,
    कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
    अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
    यह महान दृश्य है,
    चल रहा मनुष्य है,
    अश्रुश्वेत रक्त से,
    लथपथ लथपथ लथपथ
    अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।।

    जीवन के साथ हरिवंश राय बच्चन ने बचपन को भी क्या खूब कागज पर उतारा है।

    सोचा था घर बनाकर बैठूंगा सुकून से,
    पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला।
    सुकून की बात मत कर ऐ गालिब,
    बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।।

    जवानी और बुढ़ापे के बीच उनकी बचपन की यह कविता आज भी पढ़ने के बाद बचपन में ही ले जाती है।

    18 जनवरी, 2003 में मुंबई, महाराष्ट में 95 साल की उम्र में हरिवंश राय बच्चन ने जिंदगी का साथ छोड़ दुनिया से विदाई ली। कुछ ही लोगों को इस बात की जानकारी है कि हरिवंश राय बच्चन के 2 बेटे हैं। कहने का मतलब है कि अमिताभ बच्चन का एक भाई भी है जो उनसे 5 साल छोटे हैं। लाइमलाइट से दूर अजिताभ बच्चन पहले लंदन के एक बिजनेसमैन थे जो अपनी मां तेजी बच्चन के निधन के बाद भारत में ही आ बसे। बेशक आज हरिवंश राय बच्चन हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी यह कविता आज भी उनके होने की यादें ताजा करती सी नजर आती हैं।

    जीवन में एक सितारा था,
    मानो वह बेहद प्यारा था।
    पह डूग गया तो डूब गया,
    अम्बर के आनन को देखो,
    कितने इसके तारे टूटे,
    कितने इसके प्यारे छूटे,
    जो छूट गए फिर कहां मिले,
    पर बोलो टूटे तारों पर,
    कब अम्बर शोक मनाता है,
    जो बीत गई सो बात गई।।

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