स्वच्छ भारत अभियान: शौचायल के लिए बनाए गढ्ढों से निकली स्वर्ण खाद ने बदली किसान की किस्मत।

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बैद्यनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के प्रेरित होकर अपने घर पर मई, 2007 में सोख्ता गड्डे वाले शौचालय का निर्माण कराया।

स्वच्छ भारत अभियान:

शौचायल के लिए बनाए गढ्ढों से निकली स्वर्ण खाद ने बदली किसान की किस्मत।

आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत को सच साबित करते हुए धौलपुर के एक परिवार ने अपनी न केवल किस्मत संवारी, बल्कि खेती के लिए खाद पर होने वाले खर्चों को भी कम किया। यह कहानी है राजस्थान के धौलपुर जिले के गकुरैधा गांव के नगला विधौरा ग्राम पंचालय में रहने वाले बैद्यनाथ सिंह परमार और उनके परिवार की। बैद्यनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के प्रेरित होकर अपने घर पर मई, 2007 में सोख्ता गड्डे वाले शौचालय का निर्माण कराया। आज से 10 साल शौचालय निर्माण की लागत करीब तीन हजार रूपए आई थी। गड्डे की गहराई और गोलाई चार—चार फीट रखी गई थी और जालीदार ईंट की चिनाई से इसे ढका गया था। शौचालय में ग्रामीण सीट (रूरल पेन) भी लगाया गया जिससे कम पानी की उपलब्धता हाने पर भी शौचालय का उपयोग किया जा सके। शौचालय के निर्माण के बाद से परिवार के 8 सदस्यों ने इसका प्रयोग शुरू किया और खुले में शौच से मुक्ति पाई।

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बैद्यनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के प्रेरित होकर अपने घर पर मई, 2007 में सोख्ता गड्डे वाले शौचालय का निर्माण कराया।

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आज से करीब दो साल पहले शौचालय का गड्डा भर गया। ऐसे में बैद्यनाथ सिंह ने पूर्व में खोदे गए गड्डे से एक मीटर दूरी पर एक अन्य गड्डा खुदवा शौचालय को फिर से शुरू करा दिया। 14 जनवरी, 2016 को जब पूर्व में भरे हुए गड्डे को जब खोला गया तो जो हुआ उससे ऊपर कही गई कहावत सच साबित हो गई। गड्डे में किसी भी तरह की कोई बदबू नहीं आ रही थी और न ही कोई रासायनिक गैस फैल रही थी। इस गड्डे में स्वर्ण खाद का एक भंडार इकठ्ठा हो चुका था जो चाय के दाने जैसा नजर आ रहा था। इस गड्डे में लगभग एक क्विंटल स्वर्ण खाद् तैयार हुई है। बैद्यनाथ सिंह ने इसी खाद का उपयोग अपने खेत में एक बीघा गेहूं की फसल उगाने में किया और इसके बाद अन्य किसी प्रकार के फर्टिलाईजर या अन्य कृत्रिम खाद का इस्तेमाल नहीं किया। इसके बाद भी अन्य खेतों के मुकाबले उनकी पैदावार अच्छा बेहतर प्राप्त हुई। साथ ही अन्य कृत्रिम खाद के काफी सारे पैसे भी बचाये जिससे उनकी शौचालय निर्माण की लागत भी वसूल हो गई।

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अब बैजनाथ अन्य ग्रामीणों को भी शौचालय निर्माण व स्वच्छता अभियान से जुड़ने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि सोख्ता गड्डे वाला शौचालय बनवाते समय लागत भी कम आती है तथा उपयोग करते समय घर में कोई सीलन व बदबू की शिकायत भी नहीं होती। गड्डा भर जाने के बाद कुछ महीनों में वहां स्वर्ण खाद का भंड़ार प्राप्त होता है जिसका उपयोग खेती में कर पहले से अच्छी व पौष्टिक फसल उगाई जा सकती है। जिस तरह स्वच्छता अभियान ने उनकी किस्मत बदली है, उसी तरह दूसरों को भी यही सलाह दी जाती है।

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