वसुंधरा राजे को किनारे करना बीजेपी के लिए कितना बड़ा जोखिम, बागी बिगाड़ सकते हैं पार्टी का खेल

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    जयपुर। अगले महीने होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला होने वाला है। कांग्रेस सत्ता में है तो भाजपा विपक्ष में है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सत्ता में रहते हुए आम जनता के लिए कई ऐसी योजनाओं को शुरुआत की है, जो दूसरे राज्यों के लिए भी मिसाल है। गहलोत सरकार की ‘चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना’ को पूरे देश में प्रशंसा मिली थी। कांग्रेस ने अपनी चुनावी घोषणाओं में महिला, युवा, बेरोजगार, मजदूर और किसानों के लिए अलग-अलग घोषणाएं कर रही है। जनहित की योजनाओं के बल पर कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता पाने की आशा कर रही है। पार्टी राज्य में नेतृत्व संकट को हल करने का दावा कर रही है।

    राजस्थान में क्या है वसुंधरा फैक्टर
    पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा का प्रमुख चेहरा हैं। लेकिन शीर्ष नेतृत्व लगातार उनकी उपेक्षा कर रहा है। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं घोषित किया। दरअसल, मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही वसुंधरा का केंद्रीय नेतृत्व से संबंध बिगड़ गए। केंद्रीय नेतृत्व उन्हे डराना और झुकाना चाहता है, लेकिन वह शीर्ष नेतृत्व से सामने झुकने की बजाए उसे ही डरा रखा है। केंद्रीय नेतृत्व के इस डर के पीछे वसुंधरा का जनाधार है। वसुंधरा राजे दो बार मुख्यमंत्री बनीं। एक बार 2003 में उनके नेतृत्व में 120 सीटें आईं तो 2013 में उन्होंने 163 सीटों के साथ सियासी सुनामी ला दी थी। जबकि भैरों सिंह शेखावत तीन बार सीएम बने। एक बार जनता पार्टी के समय जब 152 सीटें आईं।

    12 सीटों पर बगावत की स्थिति
    सांसदों को विधानसभा का टिकट देने और कुछ नेताओं के टिकट कटने से पार्टी में बगावत की स्थिति है। करीब एक दर्जन सीटों पर गलत टिकट देने का आरोप लगाते हुए धरना-प्रदर्शन भी हुआ। टिकट कटने से नाराज विधायक व नेताओं ने जिन सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है उसमें- उदयपुर, बूंदी, सांगानेर, जैतारण, चाकसू, तिजारा, अलवर और थानागाजी है जहां खुलकर विरोध सामने आ रहा है।