राजस्थान विधानसभा सत्र स्थगित होने से हुआ नागरिकों का नुक्सान, क्या कांग्रेस करेगी इस नुक्सान की भरपाई?

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लंबे विचार विमर्श और कई बैठकों के बाद राजस्थान सरकार ने इस साल का विधानसभा सत्र बड़े ही उत्साह के साथ शुरू किया। आशाओं के विपरीति पिछले कुछ दिनों से सत्र शुरू होते ही विपक्षी पार्टियों द्वारा लगातार हंगामा करने के कारण सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चाह के भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात नहीं बन पाई।

अनुसूचित और पिछड़े वर्ग आरक्षण मुद्दे पर हुए हंगामे से सत्र हुआ स्थगित … 

आज सदन में अनुसूचित और पिछड़े वर्ग आरक्षण मुद्दे पर चर्चा होनी थी परंतु शून्यकाल कि शुरुआत ही हंगामे, आरोपों और छीटाकंशी के साथ हुई। कांग्रेस नेताओं ने राज्य सरकार को बोलने से रोका और शोरशराबे के बीच विधानसभा सत्र कल तक के लिए स्थगित हो गया।

सत्र स्थगित होने के बाद हुए नुक्सान की भरपाई करेगा कौन?

हालांकि ये कोई नयी बात नहीं है क्योंकि हम ऐसे दृश्य कई सालों से देखते आये हैं परंतु सोचने वाली बात ये है कि सत्र के रद्द होने से नागरिकों का भारी नुक्सान होगा। आखिर उसकी भरपाई कौन करेगा? एनडीटीवी के एक सर्वे के अनुसार एक सत्र रद्द होने से नागरिकों के 18 करोड़ रुपये व्यर्थ जाते हैं।

संसद एवं विधान सभाओं के एक सत्र के प्रत्येक मिनट का मूल्य लगभग 29000 रुपये है जोकि नागरिकों के जेब से जाता है। अब आप खुद ही गणित लगा सकते हैं कि पिछले कुछ सत्र स्थगित होने से जनता का कितना पैसा व्यर्थ गया है।

विद्यार्थी मित्रों की भर्ती मुद्दे पर राठौर को कांग्रेस कमेटी उपाध्यक्षगोविंद सिंह डोटासरा ने बोलने से रोका

शून्यकाल के दौरान जब विद्यार्थी मित्रों की भर्ती पर बात चली तब राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्षगोविंद सिंह डोटासरा ने भाजपा नेताओं पर जम कर निशाना साधा। हाल ही में राजे सरकार ने अपने सुराज संकल्प यात्रा में 24 हजार विद्यार्थी मित्रों से किये गए वादे को पूरा करने हेतु विद्यालय में सहायक पदों पर उनके भर्ती की प्रक्रिया आरंभ ही की थी कि चयन प्रक्रिया में कई तकनीकी पेच होने के कारण मामला न्यायालय में अटक गया।

पंचायती राज मंत्री राजेंद्र राठौड़ के अनुसार राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षा स्तर में सुधार लाने के लिए अनुभवी लोगों को तय मासिक छात्रवृत्ति पर शिक्षक सहायक के तौर पर रखने हेतु चर्चा कर रही थी परंतु उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 21, 2013 में उनकी भर्ती को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी।

क्योंकि राज्य सरकार न्यायलय के विरुद्ध नहीं जा सकती थी अतः उन्होंने ग्राम पंचायतों में 27 हजार ‘ग्राम पंचायत सहायक’ पद सृजित किये जिनपे साक्षात्कार के माध्यम से सभी विद्यार्थी मित्रों की भर्तीयां की जाएगी। राज्य वित्त आयोग से उनके पारिश्रमिक के लिए 200 करोड़ रुपये उपलब्ध कराये हैं। इसी मुद्दे पर राठौर और प्रकाश डालते परंतु उससे पहले ही कांग्रेस नेताओं ने हंगामा करना शुरू कर दिया।

आदमखोर तेंदुए के पकड़े जाने के बाद भी बेनीवाल हैं कि उसका पीछा छोड़ते ही नहीं…

विकास, भर्ती, बिजली, पानी इत्यादि अहम् मुद्दे छोड़ कर एनपीपी विधायक किरोड़ी लाल मीणा ने सरिस्का के निकटवर्ती गाँव में ग्रामीणों पर तेंदुए के हमलों का मुद्दा उठाया। मीणा ने राजस्थान सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार ने जानबूझ के मानवखोर जानवर को खुले में छोड़ा। हालांकि वन मंत्री गजेंद्र सिंह खिमसर  ने कहा कि बिना सबूत आदमखोर करार कर चिड़ियाघर में एक जानवर को कैद कर रखना वन्य जीवन अधिनियम के खिलाफ था। इस कारणवश वनविभाग को उस तेंदुए को वन में छोड़ना पड़ा परंतु अब पकड़ लिया गया है और उसकी लार के नमूने हैदराबाद की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजे गए हैं। साथ ही राज्य सरकार ग्रामीणों की सुरक्षा हेतु एक्शन प्लान तैयार कर रही है ताकि भविष्य में ऐसे हादसे रोके जा सकें।

इसके अलावा सरकार जिला ग्रामीण सड़क योजना तथा चम्बल मबदरायल परियोजना के माध्यम से जल आपूर्ति जैसे अहम् मुद्दों पर चर्चा करने जा रही थी परंतु विपक्ष के हंगामे के चलते कोई ठोस परिणाम प्राप्त नहीं हुआ।

विपक्ष के हंगामे के कारण पिछले कुछ दिनों से विधानसभा किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच पायी है। आखिर कांग्रेस के नेता ये कब समझेंगे कि आरोप-प्रत्यारोप को परे रख कर उन्हें विकास के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। सरकार के कार्यप्रणाली पर सही ढंग से सवाल उठा कर भी वे अपनी बात कह सकते थे परंतु उन्होंने हंगामा कर के जनता का भारी नुक्सान किया।