सुखद अहसास देने वाली खबर, राजस्थान में बदल रही हैं ‘लाड़ली’ की तस्वीर, अब फिल्मों जैसा नही हैं हमारा प्रदेश

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vasundhara raje

राजस्थान बदल रहा हैं। राज्य सरकार की नीतियों से अच्छे कामों के ठोस परिणाम अब मिल रहे हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में राजस्थान अब पूराना राजस्थान नही रहा जैसा राजस्थानी सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में आज तक हिंदी फिल्मों और धारावाहितों में दिखाया जाता रहा हैं। हम आपकों मरूधरा का सुखद और शानदार अहसास देने वाली खबर बताने जा रहे हैं। जी हां हम आपकों बता रहे हैं राजस्थान की लाड़ली की खबर । बेटियों के जन्म की, उनके अभिशाप होने की रुढ़िवादी सोच के  खात्मे की और लड़कों की तुलना में मधरुरा पर जन्म लेने वाली बेटियों की संख्या में इजाफे की हैं यह खबर ।

5 सालों में मिला लाड़ली को पहले से ज्यादा दुलार

पिछले पांच सालों में यहां ‘लाड़ली’ को पहले से अधिक दुलार मिला है। साल दर साल बाल लिंगानुपात कम हुआ है. लोगों का बेटियों के प्रति नजरिया बदल रहा है और इसी का नतीजा है कि पहली बार राजस्थान में लड़कियों की किलकारियां लड़कों से ज्यादा सुनाई दी हैं। राजस्थान के टोंक में 1000 लड़कों पर 1002 लड़कियों का जन्म का रिकॉर्ड वो तस्वीर है जिस पर हर राजस्थानी को नाज है। बेटियों के जन्म के यह आंकड़े बदलाव और नई सोच की नई कहानी लिख रहे हैं। साल 2001 के जनगणना में राजस्थान में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में 81 अंक कम थी। यानी 1000 लड़कों पर 909 लड़कियां थीं लेकिन इसके बाद अगले 10 सालों में लड़कियों को लेकर राजस्थान में स्थित बद से बदतर होती गई। 2011 आते-आते लिंगानुपात 888 पर आ पहुंचा।

इसके बाद जो मरुधरा पर लाड़ली की जीवन डोर फिर से मजबूत होती गई। 2011 के बाद अगले ही साल +17 अंक बढ़कर लिंगानुपात 904 पहुंच गया। 2013 के बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में राज्य सरकार की बेटियों को बचाने के लिए चलाई गई योजनाओं से प्रदेश का लिंगानुपात सुधरा। साल 2013 में 920, 2014 में 927, 2015 में 930 और पिछले वर्ष 2016 में 939 तक पहुंच गया। महिला एवं बाल विकास विभाग से जुड़े विशेषज्ञों की माने तो 2021 तक यह लिंगानुपात 950 से ऊपर पहुंच सकता है।

बदलती तस्वीर के पीछे इन 3 का है दम

सामाजिक जागरुकता, सोच में बदलाव

पिछले पांच वर्षों में समाज में लड़की के जन्म को लेकर सोच में बहुत बदलाव आए। अभिशाप मानने वाली मानसिकता में कमी आई। महिलाओं के प्रति बदले नजरिए के पीछे उनका आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनना भी है।

पीसीपीएनडीटी सेल, भ्रूण लिंग जांच पर पाबंदी और सख्त कार्रवाई

बेटी को बोझ और उसके जन्म को अभिशाप मानने वालों पर भ्रूण लिंग जांच पर रोक कानून की सख्ती ने भी सकारात्मक भूमिका निभाई है। लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम (पीसीपीएनडीटी) के तहत राजस्थान की पीसीएनडीटी सेल की लिंग परीक्षण पर नकेल कसने की दिशा में समय-समय पर सोनोग्राफी सेंटरों पर कार्रवाई से कन्याभ्रूण हत्या में कमी आई।

बेटियों को समर्पित सरकारी योजनाएं

सत्तारुढ़ भाजपा की वसुंधरा राजे के कार्यकाल में बेटियों को समर्पित कई सरकारी योजनाएं शुरू की गई। इनका असर भी बेटियों के जन्म पर सकारात्मक रहा। वर्तमान में करीब 32 ऐसी योजनाएं चल रही हैं जिनसे प्रदेश की बेटियां प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभान्वित हो रही हैं। बेटियों को बचाने की मुहिम के लिए संचालित डॉक्टर्स फॉर डॉटर्स, डॉटर्स आर प्रीसियस, बेटी जन्म पर बधाई संदेश कार्यक्रम, टोल फ्री नम्बर 104-108 और मुखबिर योजना संचालित की जा रही हैं। कन्या जन्म पर शुभलक्ष्मी और राजलक्ष्मी योजनाओं के तहत विशेष फायदे। प्रोत्साहन राशि का लाभार्थी तक सीधा भुगतान। ऑनलाइन अपडेट और इम्पैक्ट साफ्टवेयर के जरिए नजर रखा जाना। लड़कियों के लिए फ्री स्कूल शिक्षा, साइकिल, स्कूटी और विदेश में पढ़ने जैसी स्कॉलरशिप योजनाएं भी प्रदेश में बेटियों की बदलती तस्वीर में योगदान दे रही हैं।

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