बीजेपी विधायक घनश्याम तिवाड़ी का इस्तीफा, मंत्री पद नहीं मिलना बना पार्टी से बगावत का​ कारण?

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Ghanshyam Tiwari

राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रमुख पार्टियों ने चुनाव जीतने के लिए अपनी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है। प्रदेश समेत 3 राज्यों में इसी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी बीच नेताओं की उठक-पटक भी शुरू हो गई है। अपना हित साधने के लिए मौके ​की तलाश में बैठे नेताओं ने प्रदेश राजनीति के स्तर पर अपने इरादे जताना ​शुरू कर दिया है। Ghanshyam Tiwari

इसका उदाहरण बने हैं बीजेपी के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी। जयपुर शहर स्थित सांगानेर विधानसभा क्षेत्र से 2013 के चुनाव में जीतकर आए बीजेपी के वरिष्ठ नेता और विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। सोमवार को उन्होंने इसकी घोषणा की। Ghanshyam Tiwari

विधायक तिवाड़ी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस बारे में अवगत करा दिया है। पिछले साढ़े चार साल से पार्टी के खिलाफ बोलने वाले तिवाड़ी ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया है। आखिरकार इसलिए कि तिवाड़ी के पार्टी खिलाफ बगावती बोल लंबे समय से जारी थे। जब भी वो ऐसा कुछ कहते तो माना जाता कि इस बार पार्टी जरूर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देगी। लेकिन वरिष्ठ नेता होने के कारण पार्टी हाईकमान की मेहरबानी उन पर अब तक रही। आखिरकार घनश्याम तिवाड़ी ने खुद ही हाईकमान को इस्तीफा भेजा।

हाल ही में विधायक तिवाड़ी के बेटे ने बनाई नई पार्टी

सांगानेर विधायक घनश्याम तिवाड़ी के बेटे अखिलेश तिवाड़ी ने हाल ही में भारत वाहिनी नाम से अलग पार्टी बनाई है। तिवाड़ी के बेटे अखिलेश इस नई पार्टी के संस्थापक व अध्यक्ष हैं। चुनाव आयोग ने हाल ही में उनकी पार्टी को मान्यता दी है। बताया जा रहा है कि पार्टी का पहला अधिवेशन 3 जुलाई को जयपुर में होगा। इससे पहले के नाम को मिली मान्यता के बाद तिवाड़ी के बेटे अखिलेश ने बताया था कि घनश्याम तिवाड़ी की अगुवाई में आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी प्रदेश की सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि ये बात अलग है कि राजस्थान में क्षेत्रीय दलों की दाल नहीं गलती। इससे पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा ने राजपा नाम की नई पार्टी का गठन किया था। यह पार्टी गिनती की चार सीटों पर जीत हासिल कर पाई। 200 विधानसभा क्षेत्रों वाले प्रदेश में मात्र 4 सीट। यानि साफ नज़र आता है कि राजस्थान के लोगों को कांग्रेस और बीजेपी के अलावा तीसरा कोई दल पसंद नहीं है। Ghanshyam Tiwari

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कौन हैं घनश्याम तिवाड़ी? Ghanshyam Tiwari

घनश्याम तिवाड़ी राजस्थान बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में से एक माने जाते हैं। तिवाड़ी राजस्थान की 7वीं, 8वीं, 10वीं, 12वीं, 13वीं, 14वीं विधानसभा के सदस्य रहे हैं। घनश्याम तिवाड़ी 1980 में पहली बार सीकर से विधायक बने। इसके बाद 1985 से 1989 तक एक बार फिर विधानसभा क्षेत्र सीकर से विधायक रहे। 1993 से 1998 तक विधानसभा क्षेत्र चौमूं से विधायक बने। फिलहाल 2003 से वर्तमान में विधानसभा क्षेत्र सांगानेर से विधायक है। मतलब साफ है कि तिवाड़ी अपने लिए सेफ सीट ढूंढ़ते रहे हैं। जहां लगा कि उनकी दाल नहीं गलने वाली, वहां से तिवाड़ी खिसक लिये। सांगानेर की जनता को बीजेपी की विपक्षी पार्टी का दमदार उम्मीदवार मैदान में नहीं मिला तो पार्टी के नाम पर तिवाड़ी लगातार तीन बार सांगानेर से जीतते रहे हैं।

घनश्याम तिवाड़ी जुलाई 1998 से नवंबर 1998 तक भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। दिसंबर, 2003 से 2007 तक वसुंधरा राजे सरकार में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, विधि एवं न्याय, संसदीय मामले, भाषाई अल्पसंख्यक, पुस्तकालय एवं भाषा मंत्री भी इन्हें बनाया गया। तिवाड़ी दिसंबर 2007 से वर्ष 2008 तक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और विधि एवं न्याय मंत्री के पद पर रहे। यहीं से विभाग बदलने के साथ ही तिवाड़ी के मन में पार्टी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति बैर-भाव शुरू हो गया था।

वर्तमान वसुंधरा सरकार में मंत्री पद नहीं मिलने के बाद तेज हुए तिवाड़ी के बगावती सुर

2013 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रदेश में रिकॉर्डतोड़ बहुमत हासिल हुआ। वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी ने 200 विधानसभा वाले राजस्थान में 163 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। जब वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री पद और कई विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली, तो इस लिस्ट में घनश्याम तिवाड़ी का कहीं भी नाम नहीं था। यहां से तिवाड़ी के पार्टी और मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ बगावती तेवर और तेज हो गए। यानि 2013 की बीजेपी सरकार में तिवाड़ी को मंत्री नहीं बनाना उन्हें हर्ट कर गया। इसी के बाद से तिवाड़ी ने मुख्यमंत्री और बीजेपी प्रदेश सरकार पर शब्दों की फायरिंग करना शुरू कर दिया। करे भी क्यूं नहीं, वरिष्ठ नेता को मंत्री जो नहीं बनाया। चुनाव जीतकर आना ही सबकुछ थोड़े ना है, थोड़े से पेट किसका भरता है साहब।

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  1. नाम के मुताबिक ख़बर नही देते हो केवल एक व्यक्ति विशेष से कॉन्ट्रेक्ट है अधिकतर खबरों में दम नही है

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