राजस्थान वन विभाग ने ऐसा क्या किया कि मात्र 12 घंटों में रणथंबोर के गाँवों को मिल गया उनका हक?

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    गत कुछ दिनों में राजस्थान के कई बड़े शहरों में आदमखोर जानवरों के हमले बढ़ गए हैं। राज्य में बढ़ते मानव-पशु संघर्ष को देखते हुए, रणथंबोर टाइगर रिजर्व (आरटीआर) ने हाल ही में जानवरों के कारण घायल या स्थानांतरित किये गए ग्रामीणों को उनका हक दिलाने का बीड़ा उठाया है। ग्रामीणों को मुआवजा प्रदान करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए आरटीआर द्वारा एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। पहले जहां इस प्रक्रिया में न्यूनतम 29 दिनों और अधिकतम 320 दिन लगा करते थे, आज, उसी प्रक्रिया को वन विभाग के कुशल अफसरों ने केवल 12 घंटों में हल कर दिया।

    2 अप्रैल को, आरटीआर के निकट एलनपुर के पास जोगिपुरा गांव में बाघ के हमले से दो गायों की मौत हो गई। गाँववालों ने मौके पर वन विभाग को सूचना दी स्थिति का सही आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम को उस गाँव में भेजा गया। आकलन प्रक्रिया के बाद अफसरों ने दोपहर तक सभी आवश्यक दस्तावेज तैयार कर लिए तथा मृत गायों के मालिकों को 10-10 हज़ार रुपये का चेक प्रदान करने का फैसला कर दिया। मात्र 12 घंटे के भीतर फील्ड डायरेक्टर वाई.के. साहू और वेस्ट इंग्लैंड यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ मार्क एवरर्ड ने पीड़ित गाय मालिकों को चेक प्रदान किया। गौरतलब ये है कि मार्क एवरर्ड वही शख्स हैं जिन्होंने हाल ही में ‘ईको सिस्टम सर्विस एन्हांसमेंट फॉर एलिवेशन ऑफ़ वाइल्डलाइफ ह्यूमन कॉन्फ्लिक्ट्स इन अरवलीली हिल्स राजस्थान, इंडिया’ नाम का एक पेपर पब्लिश किया है।

    चौंकाने वाली बात ये है कि यह घटना उस समय कि है जब पिछला वित्तीय वर्ष समाप्त हुआ था और नए वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए 31 मार्च के बाद वन विभाग को राजस्थान सरकार की तरफ से तब तक धन प्राप्त नहीं हुआ था। इसका मतलब साफ है की अगर सभी विभाग चाहें तो वे आसानी से नागरिकों कि सहायता से अपने कोष राशि का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस सिलसिले में टाइगर वॉच एनजीओ के धर्मेन्द्र खंडाल से जब उनकी राय पूछी गयी तब उन्होंने बताया कि “वन्यजीव संरक्षण के लिए मानवों और जानवरों के बीच सही तालमेल बैठाना अत्यंत आवश्यक है। जानवरों द्वारा हमले से मानवों को बचाने और ऐसी समस्याओं का तुरंत निदान करने से लोग जंगलों में जा कर जानवरों को क्षति नहीं पहुंचाएंगे। इससे वन्यजीव संरक्षण संभव है।”

    एनजीओ टायगर वॉच ने इस सिलसिले में राजस्थान के जंगलों में एक अध्ययन किया गया था। उनके अध्ययन के अनुसार जंगली जानवरों द्वारा मारे गए पशुधन मालिकों को वन विभाग द्वारा मुवाअजा देने की प्रक्रिया में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।औसतन विभाग इस प्रक्रिया में पहले 30 से 40 दिन लगाता था। 2008-09 में एक केस में कांग्रेस सरकार के राज में सबसे ज़्यादा – 320 दिन लगे थे।

    अब ऐसा बिलकुल नहीं होगा। फरवरी में वन विभाग की बैठक में लिए गए फैसले के बाद, पार्क प्रबंधन तेजी से अपने ट्रैक पर है। पिछले कुछ दिनों में वन सबंधित समस्याएं समाधान करने की प्रक्रिया तेज हो गयी हैं। वन मंत्री गजेन्द्र खमीर और अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) एन सी गोयल ने मुआवजा दरों को बढ़ाने के लिए और मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिए वितरण की प्रक्रिया को आसान बनाने का निर्णय लिया था। भविष्य में इस फैसले के चलते कई लोगों को लाभ प्राप्त होगा।

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