कर्जमाफी के लिए आंदोलन कर रहे किसानों को वसुंधरा सरकार राहत दे चुकी है। राजस्थान सरकार ने किसानों को 50 हजार रूपए तक की कर्जमाफी देना कबूला है। हालांकि इससे सरकार पर 20 हजार करोड़ रुपए का भार पड़ेगा। इसके लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया जाएगा। यह कमेटी अन्य राज्यों में पहले किसानों को दिए जाने वाले कर्ज माफी का अध्ययन करेगी और उसके बाद में एक माह के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। आपको बता दें कि ऐसा करने वाला राजस्थान देश का तीसरा ऐसा राज्य है जिसने किसानों का कर्ज माफ किया है और जहां भारतीय जनता पार्टी का कमल खिला हुआ है। मतलब है कि इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है। हालांकि किसानों का कर्जमाफी आंदोलन देश के कई राज्यों में फैला था लेकिन केवल इन्ही तीन राज्यों में किसानों को राहत दी गई है।
उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र भी हैं लिस्ट में शामिल –
राज्यस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र इस लिस्ट में शामिल हैं जिन्होंने किसानों को कर्जमाफी दी है। राजस्थान के संदर्भ में बात करें तो किसानों को 50 हजार रूपए की कर्जमाफी देने के बाद राजस्थान सरकार पर करीब 20 हजार करोड़ रूपए का भाग आएगा। वहीं बात करें योगी आदित्यनाथ की उत्तरप्रदेश सरकार की तो वहां कर्जमाफी में 36 हजार करोड़ रूपए का भार पड़ा है। इसी तरह महाराष्ट्र में बीजेपी के देवेन्द्र फड़नवीस की सरकार है जिसने किसानों को कर्जमाफी देने स्वीकार किया है। इस कदम से महाराष्ट् सरकार पर 34 हजार करोड़ रूपए का अतिरिक्त भार आया है। हालांकि राजस्थान सरकार पर पड़ने वाला 20 हजार करोड़ रूपए का अतिरिक्त भार उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार की तुलना में काफी कम है लेकिन यहां की भौगोलिक परिस्थतियों को देखते हुए यह कम नहीं है।
14 जिलों में फैला था किसानों का आंदोलन –
आपको बता दें कि राजस्थान के 14 जिलों में किसानों का कर्जमाफी आंदोलन फैला था जिसमें सीकर, चूरू, झुंझनू, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ व बीकानेर शामिल थे। किसानों का यह आंदोलन 13 दिन तक चला था। बाद में बीते बुधवार देर रात सरकार ने उनकी मांगों पर कार्रवाई करते हुए किसानों का 50 हजार रूपए तक का कर्जमाफ करने की हामी भरी है।
क्या है स्वामीनाथन रिपोर्ट जिसे लेकर हुआ आंदोलन
बीते 13 दिनों से किसानों ने अपनी 11 सूत्री मांगों को लेकर आंदोलन किया हुआ था। राज्य के करीब 10 जिलों में इसका गहरा असर पड़ा था। चक्काजाम से लेकर छुटपुट हिंसा भी देखने को मिली लेकिन सरकार से समझौते के बाद 13वें दिन यह सब कुछ खत्म हो गया। अपनी मांगों में किसानों ने डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू करने का समर्थन किया है। अब यह जानने की जरूरत है कि आखिर इस रिर्पोट में ऐसा क्या है जिसे लागू करने के लिए किसान इतना जोर दे रहे हैं।
आखिर ऐसा क्या है इस रिपोर्ट में
क्या है स्वामीनाथन रिपोर्ट — साल 2004 में केंद्र सरकार ने एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स आयोग का गठन किया। इस आयोग का मकसद अन्न की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने और किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने था। इन्हीं दो मकसदों को लेकर आयोग ने अपनी 5 रिपोर्ट सरकार को सौंपी। 5वीं रिपोर्ट 4 अक्तूबर, 2006 में सौंपी गई जिसे तेज व ज्यादा समग्र आर्थिक विकास के 11वीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य को लेकर बनाई गई थी।
इस आयोग की सिफारिशों में राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, किसानों के लिए 4 प्रतिशत सस्ते लोग उपलब्ध कराने, किसान के कर्ज न चुकाने जाने की स्थिति में कर्ज न वसुला जाने, किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए कृषि राहत फंड बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता करने की कई सिफारिशें की गई थी।
इस रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया कि किसानों से कर्ज उगाही में भी नरमी बरती जाए। जब तक किसान कर्ज़ चुकाने की स्थिति में न आ जाए तब तक उससे कर्ज़ न वसूला जाए। हालांकि सरकार ने हाल ही में समझौते के दौरान यह कहा है कि स्वामीनाथन टास्क फोर्स की 80 प्रतिशत से अधिक सिफारिशों को लागू किया जा चुका है।
कर्ज माफी बहुत अच्छा फैसला है पर 50000 ऊट के मुह मे जीरा है फसल चोपट हो गयी है