राजस्थान में अगले साल यानि साल 2018 में विधानसभा चुनाव होने हैं। वैसे तो हमेशा की तरह भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के तौर पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी (आप) की लहर भी देखी जा रही है। हालांकि प्रमुख चुनावी टक्कर बीजेपी व सोनिया गांधी व राहुल गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी में ही होगी लेकिन आप की उपस्थिति को इस बार कम नहीं आंका जा सकता। यह पार्टी किसी बड़े उलटफेर के मौके तलाशने का रास्ता खोज रही है।
अगर बात करें पिछले विधानसभा चुनावों की तो साल 2013 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में कुल 200 सीटों में से बीजेपी को 163 सीटें मिली थी और कांग्रेस के खाते में 21 सीटें आई थीं। बसपा को 3 और बाकियों को 10 सीटें मिली थीं। आप पार्टी ने कुल 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी में हार का मुंह देखना पड़ा। आप को कुल मिलाकर केवल 8008 वोट मिले जो वाकई में काफी कम है। वहीं अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी का गढ़ बनी दिल्ली में साल 2013 में हुए चुनावों में कुल 70 सीटों में से 28 सीटों पर आप पार्टी का कब्जा था। यहां केजरीवाल ने 15 सालों तक चले कांग्रेस की शीला दिक्षित के एकछत्र राज को करारी मात दी और कांग्रेस की 8 सीटों के साथ मिलकर केजरीवाल ने अपनी सरकार बनाई थी। सरकार गिरने के बाद 2015 में फिर से केजरीवाल बड़ा धमाका करते हुए 70 में से 67 सीटों पर अपना कब्जा जमाते हुए मुख्यमंत्री बने। बाकी की 3 सीटें बीजेपी को मिली।
अब फिर से आते हैं राजस्थान की तरफ। राजस्थान में अगले साल फिर से विधानसभा चुनाव होने को है। ऐसे में आप पार्टी अन्य पार्टियों के साथ पूरी तैयारी में है। फिलहाल केजरीवाल ने राजस्थान से अपने उम्मीद्वारों और अपनी तैयारियों के बारे में कोई खास खुलासा नहीं किया है लेकिन युवाओं में अपनी पीठ तो बना ही ली है। युवा वर्ग की माने तो जिस तरह के काम केजरीवाल ने दिल्ली में किए हैं, उससे थोड़ी बहुत उम्मीद करना तो बनता ही है। फ्री वाईफाई, बिजली बिल में कटौती और सेफ्टी कैमरे सहित कुछ अच्छे काम हैं जिनसे आम जनता जुड़ी हुई है। हां, केजरीवाल व पार्टी पर लगे कुछ मामले जरूर इस घारणा को तोड़ते हुए दिखाई देते हैं।
वहीं बात करें सीनियर वर्ग की तो उनका भरोसा बीजेपी और कांग्रेस पर पूरी तरह कायम है। अब जिस तरह देश में युवा वर्ग बढ़ता जा रहा है, उनकी सोच को देखते हुए आप का पलड़ा किसी भी तरह हल्का नहीं आंका जा सकता। हालांकि बीजेपी व कांग्रेस जैसी बड़ी और पुरानी पार्टियों को देखते हुए केजरीवाल की झाडू की ताकत थोड़ी कम जरूर है लेकिन दिल्ली में हुए उलटफेर और युवाओं की उस ओर जाती सोच को हलके में लिया जाना ठीक नहीं होगा।