भाजपा राजस्थान जीतेगी या हारेगी? एक राजस्थानी भाई की माने तो स्थिति ये है

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rajasthan elections 2018
सुंधरा राजे का दुबारा चुना जाना आसान नहीं है क्योंकि चुनाव ऐसे राज्य में हैं जहाँ 1993 के बाद से किसी भी मुख्यमंत्री को दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से नहीं चुना गया है। तो क्या वास्तव में उनके सामने बाधाएं हैं ? हाँ भी और नहीं भी।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 2018 में आगामी परीक्षा के लिए तैयार हैं। अभी जबकि कुछ लोग ये कह सकते हैं कि राजस्थान चुनाव दूर हैं,  लेकिन राजस्थान की इस नेता की कार्य योजनाएं पहले से ही युद्ध स्तर पर तैयार हैं। वसुंधरा राजे का दुबारा चुना जाना आसान नहीं है क्योंकि चुनाव ऐसे राज्य में हैं जहाँ 1993 के बाद से किसी भी मुख्यमंत्री को दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से नहीं चुना गया है। तो क्या वास्तव में उनके सामने बाधाएं हैं ? हाँ भी और नहीं भी। rajasthan elections 2018
 पूर्ण अव्यवस्था वाला विपक्ष और एक युवा विपक्षी नेता (जिन्होंने 2013 में अपनी सीट गंवा दी थी) जिन्हें प्रधान प्रतिद्वंद्वी के रूप में बहुत अनुभव नहीं है, के विरुद्ध अपनी सेना के एक अनुभवी कमांडर के रूप में उनके पास मजबूत मौका है। उनके पास राज्य के इतिहास में अपनी छाप बनाने का एक उत्कृष्ट अवसर है। rajasthan elections 2018
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वसुंधरा राजे एक कुशल प्रबंधक हैं और वे समय-समय पर कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करने को वरीयता देती हैं जिससे ये पता चलता रहे कि परियोजनाएं योजनाबद्ध चल रही हैं। लेकिन कुछ संवाद हीनता की सी स्थिति भी है, आम धारणा यह है कि मंत्री निष्क्रिय हैं और मोदी-वसुंधरा के नाम को एक बार फिर भुनाने की उम्मीद कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत को कई प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ा था, जो पिछले चुनावों में अंततः उनकी हार का कारण बन गया था और निश्चित रूप से उसी तरह  कांग्रेस शासन शैली को अंतिम समय में मुफ्तखोर, पक्षपाती और भ्रष्टाचारी के रूप में जिम्मेदार ठहराया गया था। ये वसुंधरा राजे के लिए एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक होना  चाहिए। शायद इसी कारण से, वसुंधरा राजे को राज्य के लोगों के साथ जुड़ने के लिए बार-बार रैलियों का आयोजन करते देखा गया है। जब उनकी रैलियों में भीड़ इकट्ठा होती हैं, तो एक सवाल भी उठता है कि यह  भीड़ पार्टी को वोट भी देगी? rajasthan elections 2018
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वसुंधरा राजे सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय न होने के कारण प्रसिद्ध हैं जबकि  इसके विपरीत कई मुख्यमंत्रियों  को ऑनलाइन बड़ा समर्थन मिला है  । हालांकि, वह अपने कार्यों के माध्यम से बोलना ज्यादा पसंद करती है जैसा कि हाल ही में जयपुर शहर में उनकी नगर यात्रा में देखा गया है। अतीत में दबी जबान से यह भी कहा गया कि बीजेपी एवं आरएसएस के शीर्ष नेताओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, अफवाहें तो यह भी उड़ी कि उन्हें प्रतिस्थापित किया जा सकता है। लेकिन अमित शाह ने सभी अटकलों को विराम देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि राजे राज्य की मुख्यमंत्री के रूप में अपना संपूर्ण कार्यकाल पूरा करेंगी।
वसुंधरा राजे के जमीनी स्तर के विकासकार्य अभूतपूर्व है । “गौरव पथ” परियोजना, जिसका उद्देश्य गांवों को जोड़ना है, उनकी एक बड़ी सफलता है। केंद्र के साथ उत्तरोत्तर कार्य करने से, राज्य में सड़क निर्माण उच्च स्तर पर है जिससे लोगों और व्यापारियों की खुशी के लिए कनेक्टिविटी की समस्याएं आसान बन रही हैं। महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण के प्रति उनके समर्पण की व्यापक रूप से सराहना की गयी है। “राजश्री योजना” जो बेटियों को जन्म से ही धन प्रदान करती है, इसकी शुरूआत के साथ राजस्थान में अनोखा दौर शुरू हुआ है, इस प्रकार बालिका के स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र कल्याण पर काफी जोर दिया जाता है। इसका प्रभाव जबरदस्त रहा है और यह पुरुष-महिला लिंग अनुपात में सुधार और साक्षरता दर में सुधार के रूप में दिखायी पड़ता है। rajasthan elections 2018
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वसुंधरा राजे की एक अन्य परियोजना, भामाशाह योजना ध्यान देने योग्य है जो प्रधान मंत्री जन धन योजना के साथ समन्वय में काम करती है। इस योजना के माध्यम से महिला कार्ड धारक को लाभ प्रत्यक्ष रूप से उनके अकाउंट में भेजा जाता है।
 लेकिन हर चीज सही भी नहीं है, आपसी मतभेद निश्चित रूप से भाजपा के लिए एक समस्या हैं और कांग्रेस इसका लाभ उठाना चाहती है। भाजपा के अंदर की लड़ाई घनश्याम तिवारी के नेतृत्व में है जो अपनी ही पार्टी पर आरोप लगाते रहते हैं जिसके लिए उन्हें कई नोटिस भी भेजे गए हैं। हवाई अफवाह यह है कि वह तीसरा मोर्चा बनाने की तलाश कर रहे हैं। राजस्थान पारंपरिक रूप से दो राष्ट्रीय दलों के बीच घूमता रहा है इसलिए राजस्थान में संभावित तीसरे मोर्चे का उदय कम लगभग असंभव है।
भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक व्यापारी समुदाय के थोड़े अड़ियल होने की संभावना है। विमुद्रीकरण और जीएसटी के प्रभावों के कारण उनमें काफी असंतोष है। “व्यवसायी वर्ग” ने सरकार के खिलाफ “हमारी भूल कमल का फूल” नारे के साथ विरोध प्रदर्शन किया था। व्यवसायी समुदाय किस प्रकार उत्साहित होगा अभी यह कहना मुश्किल है। केंद्र की नीतियों का “प्रभाव” संभवतः राज्य चुनावों के परिणाम निर्धारित करेगा। लेकिन जीएसटी एक लंबी अवधि की योजना है और इसका प्रभाव निश्चित रूप से अगले साल के शुरू में दिखाई देगा, इसलिए अधिक संभावना है कि व्यापारी वर्ग भाजपा के पक्ष में वापस आ सकता है।
राजस्थान में सबसे मुश्किल समस्याओं में से एक आरक्षण है, गुज्जर और जाट दोनों ने एक ही समय में आरक्षण की मांग की है। जाति आधारित राजनीति और आरक्षण का पुराना एजेंडा उठाने में कांग्रेस अपने हाथ आजमा सकती है। बीते समय में गुज्जर आरक्षण आंदोलन ने कई हिंसक विरोध प्रदर्शन देखे हैं, हालांकि अब सबकुछ नियंत्रण में लग रहा है, आरक्षण की मांग फिर से बढ़ सकती है और यह वसुंधरा राजे के लिए एक कठिन कार्य हो सकता है। rajasthan elections 2018
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एक अन्य संभावित समस्या राजपूत मतों का विभाजन है, जो कि भाजपा का एक पारंपरिक वोट बैंक है, जो राज्य के मतदाताओं का लगभग 8-10% है। इसके लिए आनन्दपाल मुठभेड़ को जिम्मेदार ठहराया गया है जिसके कारण राजपूतों में बहुत नाराजगी पैदा हुई है। rajasthan elections 2018
इसलिए, भाजपा के गढ़ होने के बावजूद भी राजस्थान में वसुंधरा राजे को एक कठिन परीक्षा से गुजरना है। इस समय कुछ भी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। लेकिन फिलहाल तो धरातल पर हुए विकास को देखते हुए वसुंधरा राजे का पलड़ा भारी दिख रहा है। चलिए देखते हैं, ऊँट किस करवट बैठता है। rajasthan elections 2018
(अभिलेश कुमार जैन का लेख)

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