10 दिसम्बर को पीएम नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के बनासकांठा जिले के डीसा में एक जनसभा को संबोधित किया। 8 नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा के बाद मोदी ने जितनी भी जनसभाएं की, उन सब में नोटबंदी पर जरूर बोले, लेकिन 10 दिसम्बर को डीसा में मोदी ने विपक्ष के समक्ष एक सकारात्मक प्रस्ताव रखा। मोदी ने कहा चुनाव में जिस प्रकार सभी राजनीतिक दल मतदान बढ़ाने के लिए प्रयास करते हैं,उसी प्रकार नोट बंदी से उत्पन्न हुई परेशानियों को दूर करने में भी विपक्ष पहले करें। इससे यदि किसी दल को राजनीतिक लाभ मिलता है तो उसे भरपूर लेना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि 10 दिसम्बर का मोदी का प्रस्ताव सकारात्मक है, लेकिन अच्छा होता कि पीएम इस प्रस्ताव को पहले ही विपक्ष के सामने रख देते। राजनीतिक दल नोटबंदी पर कोई आपत्ति नहीं कर रहे। आपत्ति सिर्फ क्रियान्विति को लेकर है। स्वयं मोदी भी मानते हैं कि आम व्यक्ति को परेशानी हो रही है।
इस परेशानी को मुद्दा बनाकर ही विपक्ष संसद में हंगामा कर रहा है। यदि क्रियान्विति में विपक्ष के सुझाव पहले ही शामिल कर लिए जाते तो आज विपक्ष को संसद में हंगामा करने का अवसर नहीं मिलता। 10 दिसम्बर को पीएम ने अपनी लाचारी भी जताई। उनका कहना रहा कि संसद में उन्हें बोलने नहीं दिया जाता, इसलिए जनसभा में बोलता हंू। संसद में विपक्ष के हंगामे के जवाब में पीएम ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कथन को आगे कर दिया। मोदी ने कहा कि लम्बे राजनीतिक जीवन वाले राष्ट्रपति ने भी संसद के नहीं चलने पर चिंता जताई है। विपक्ष को कम से कम राष्ट्रपति की चिंता का ख्याल करना ही चाहिए।
(एस.पी.मित्तल)