वेलेंटाइन वीक की शुरूआत हो चुकी है और आज चॉकलेट डे है। बेशक आपने अपने वेलेंटाइन को अब तक चॉकलेट गिफ्ट कर दी होगी या फिर करने की तैयारी में होंगे। हो भी क्यूं ना, चॉकलेट का मीठा स्वाद प्यार भरे रिश्तों में मिठास घोल देता है। लेकिन क्या आपको पता है कि चॉकलेट का स्वाद पहले मीठा नहीं बल्कि कड़वा होता था और इसे पशुओं के पीने के काम में लिया जाता था। हमें पता है आपको यह जानकार ताज्जूब होगा लेकिन यह सच है। चॉकलेट का इतिहास हजारों साल पुराना है और कई चरणों से गुजरकर आज चॉकलेट का सफर बार, कैंडी, कुकीज, केक, पेस्ट्री, आइसक्रीम और पिज्जा तक आ पहुंचा है। लेकिन चॉकलेट के शौकीन शायद यह नहीं जानते होंगे कि आप यह नहीं जानते होंगे मुंह में मिठास घोलने वाली इस चॉकलेट का सेवन सुअरों के पीने के लिए होता था।
हमारी यह बात सुनकर निश्चित तौर पर आप मुंह में रखी चॉकलेट भी उगलने का प्रयास करेंगे लेकिन थोड़ा रूकिए। असल में यह बात हजारों वर्षों पहले की है। अब जो चॉकलेट आप खा रहे हैं, वह बिलकुल भी वैसी नहीं है और न ही उस काम में लाई जा रही है।
चॉकलेट का इतिहास 4000 साल पहले तक जाता है। शुरुआती दौर में चॉकलेट का टेस्ट कड़वा होता था। इसे कुछ इस तरह बनाया ही जाता था. ककाउ के बीजों को फर्मेन्ट करके रोस्ट करते थे और बाद में इसे पीसा जाता था। इसके बाद इसमें पानी, वनीला, शहद, मिर्च और दूसरे मसाले डालकर झागयुक्त पेय बना लिया जाता था। इसे मुख्यत: शाही पेय समझा जाता था और इसके दूसरे चिकित्सकीय महत्व थे। इसके कड़वे स्वाद की वजह से उसने इसे सुअरों के लिए पीने वाला कड़वा पेय कहा था।
कहा जाता है कि 1848 में ब्रिटिश चॉकलेट कंपनी जे.एस. फ्राई एंड संस ने पहली बार कोको लिकर में कोको बटर और चीनी मिलाकर पहली बार खाने वाला चॉकलेट बनाया।
1867 में स्विट्जरलैंड के हेनरी नेस्ले ने मिल्क पाउडर का आइडिया ईजाद किया और 1875 डेनियल पीटर ने चॉकलेट में मिल्क मिलाकर मिल्क चॉकलेट बनाया।
1879 में रूडॉल्फ लिंडट् ने कॉन्चिंग मशीन का आविष्कार किया, जिसने चॉकलेट को आज की तरह का वेलवेटी टेक्स्चर दिया। इस मशीन से चॉकलेट का स्वाद बदलने में भी मदद मिली।
इसके बाद चॉकलेट का स्वाद धीरे-धीरे दुनियाभर की जुबान पर चढ़पे लगा और ज चॉकलेट इंडस्ट्री की विश्वभर में 7500 करोड़ से भी ज्यादा बड़ी कंपनियां हैं। कैडबरी, हर्शी, नेस्ले, पारले, मार्श व अमूल इन सब में कुछ नाम हैं।