उपचुनाव नतीजे: कांग्रेस के भविष्य को लेकर सवाल बरकरार..

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद हाल ही में देशभर के 11 लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में हुए उप-चुनाव में देश की बदलती राजनीति के कई नए पहलू सामने आए हैं। राजनीति के लिहाज से पिछले कुछ महीने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अच्छे नहीं रहे हैं। भाजपा को इन उप-चुनावों में हार का सामना झेलनी पड़ी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी बनीं, लेकिन फिर भी सरकार बनाने में सफल नहीं हो सकीं। By election results

या यूं कहें कि एक तरह से जीतकर भी कर्नाटक हार गई। इन सबके बीच नए राजनीतिक हालात हैं, जिसने विपक्षी एकता को एक नई संजीवनी दी है। लेकिन फिलहाल हम बात करने वाले हैं बदलती परिस्थितियों में कांग्रेस की भूमिका और उसके भविष्य की। 2014 के बाद से अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर में पहुंची कांग्रेस बदलते हुए राजनीतिक हालात में क्या फिर से खुद को स्थापित कर पाएगी? By election results

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राहुल बनाम मोदी के खेल में नहीं पड़ना चाहती है कांग्रेस By election results

कांग्रेस के हालिया स्टैंड को देखते हुए लगता है कि वह अब आगे राहुल बनाम मोदी के खेल में नहीं पड़ता चाहती है। गुजरात और कर्नाटक में बेहतर कैंपेन के बावजूद राहुल गांधी अब भी उस राजनेता की छवि से दूर हैं, जो आमने-सामने की लड़ाई में मोदी को मात दे सके। कांग्रेस और साझा विपक्ष की कोशिश है कि 2019 का चुनाव ‘मोदी बनाम मुद्दे’ की लड़ाई बनाई जाए।

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विपक्ष का गेम प्लान यही होगा कि आम-सहमति से जनता के सामने एक ऐसा कार्यक्रम पेश किया जाए जो अपील करे और जो एलायंस पार्टनर जहां ताकतवर है, वो वहां मोदी रथ को रोके। शख्सियत, मुद्दे और लहर से अलग भारत के चुनावी नतीजे अंकगणित के आधार पर भी तय होते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूपी का उप-चुनाव है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के आपस में हाथ मिलाते ही खेल बदल गया। By election results

फिसलती जमीन थामने के प्रयास में कांग्रेस, लेकिन भविष्य को लेकर संशय By election results

2014 के चुनाव के बाद से कांग्रेस के लिए धरातल पर कुछ बदला गया है। कांग्रेस अब सिर्फ गिनती के राज्यों में सत्ता में हैं। या यूं कहें कि न के बराबर। कांग्रेस जैसी देश की सबसे बड़ी पार्टी आज अर्स से फर्श पर आ गई है। कांग्रेस के लिए अपनी पुरानी साख हासिल करना बहुत ही मुश्किल नज़र आ रही है।

एक के बाद एक राज्य कांग्रेस के हाथ से फिसले हैं। सिर्फ पंजाब को छोड़कर, कांग्रेस को कहीं भी सफलता नहीं मिली। यानि चार साल में कांग्रेस के पास खोने के अलावा उपलब्धि के नाम पर कुछ भी खास नहीं है। राहुल गांधी गुजरात और कर्नाटक के कैंपेन में एक मैच्योर नेता के तौर पर उभर कर सामने आए।

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लेकिन केंद्र में वापसी का दावा मजबूत करने के लिए कांग्रेस को जो टर्निंग प्वाइंट चाहिए था, वह उसे अब तक नहीं मिला है। कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद यह साफ हो गया कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अब भी अपनी वजूद की लड़ाई लड़ रही है। इसी चिंता ने कांग्रेस को आधी से कम संख्या वाले जेडीएस को कर्नाटक के सीएम की कुर्सी सौंपने पर मजबूर किया है। कांग्रेस हर जगह गठबंधन करने के लिए तैयार है, जिससे यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस का भविष्य अब खतरे की स्थिति में है। By election results

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