जयपुर। राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन जनवरी में ही विधानसभा चुनावों की आहट शुरू हो गई है। राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी रणनीति के साथ तैयारियों में लग गई है। वोटरों को लुभाने के लिए राजनेता तमाम कोशिशें में जुट गए है। वहीं, राजस्थान में खुद को गुर्जर समाज के सबसे बड़े नेता मानने वाले सचिन पायलट अपने ही समाज की नाराजगी पर चुप है।
पायलट की गुर्जर समाज की मांगों में रूचि नहीं
हाल ही में हुए प्रधानमंत्री जी के दौरे से समाज को कई उम्मीदें थी। मंदिर कोरिडोर, केन्द्रीय भर्तियों में आरक्षण सहित कई मुद्दे थे, जिन पर समाज को निराशा ही हाथ लगी। खबर हैं कि सचिन पायलट की गुर्जर समाज की मांगों में कोई रूचि नहीं है, जिसके कारण ऐसा हुआ है।
गुर्जर नेता कहलाने से क्यों कतराते है सचिन
राजनीतिक के जानकार भी सोचने के लिए मजबूर हो गए है कि आखिर क्या मजबूरी है कि गुर्जर समाज का भरपूर समर्थन पाकर भी बड़े मंचों पर सचिन उनकी आवाज नहीं बनते हैं। वोट बैंक के लिए गुर्जरों के बीच रहने वाले पायलट आखिर सार्वजनिक मंचों पर खुद को गुर्जर नेता कहलाने से क्यों कतराते हैं।
पायलट से सवाल पूछ रहा है समाज
समाज का एक बड़ा वर्ग उनसे यह पूछते हुए नाराज है कि सचिन पायलट ने आज तक समाज के लिए किया ही क्या है। ना वो कभी MBC रिजर्वेशन पर बोले, ना 9वीं अनुसूची में जोड़ने के लिए आवाज उठाई, ना ही केन्द्र में विशेष आरक्षण पर बोलते और ना ही समाज के महापुरुषों पर अपनी राय रखते हैं। पंचायती राज मंत्री के रूप में उन्होंने षड़यंत्रपूर्वक पंचायतों को पुनर्गठित करने का आदेश जारी किया था, ताकि एमबीसी समुदायों को दो भागों में विभाजित किया जा सके। गुर्जर समाज के आंदोलनों से भी वे अक्सर दूरी ही रखते हैं।
आखिर क्यों चुप है सचिन
सचिन विपक्षी पार्टी भाजपा एवं पीएम मोदी पर सिर्फ खानापूर्ति करने के अलावा कोई सवाल नहीं उठाते। उनके इस बर्ताव से अब समाज समझ गया है कि पायलट की यह चुप्पी खुद को गंभीर नेता दर्शाकर गुर्जरों को ठगने तक सीमित है। सचिन समाज से पहले खुद के फायदे की सोच रहे हैं और वह जरूर किसी षड़्यंत्रकारी नेता से मिले हुए हैं।