राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के बिंजौर में एक ऐसी जगह भी है जहां प्यार करने वालों के लिए हर दिन वैलेंटाइन डे होता है और प्यार करने वालों का यहां आना-जाना लगा रहता है। यहां सजदा कर एक-दूसरे का साथ उम्रभर निभाने की कसमें खाई जाती हैं और मन्नतों के धागे बांधे जाते हैं। इस जगह आने वाले जोड़ों के लिए हर दिन वैलेंटाइन-डे होता है क्यों कि यही वो जगह है जहां दो प्यार करने वालों को मोहब्बत का प्रतीक मान पूजा जाता है।
यहां हैं प्यार की मिसाल लैला-मजनूं की मजार
दरअसल, हम बात कर रहे हैं भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा की कंटीली तारों के पास प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए सुकून भरी लैला-मजनूं मजार की। यह मजार श्रीगंगानगर के अनूपगढ़ में सरहद से 10 किलोमीटर दूर बिंजौर गांव में है। यूं तो यहां हर साल जून के महीने में मेला लगता है। लेकिन सरहद पर युवा वर्ग और प्रेमी जोड़ों का आना-जाना रोज का है। खासतौर पर वैलेंटाइन डे के दिन पिछले कई सालों यहां मेले जैसा हुजूम लगने लगा है।
हर रोज श्रद्धा और आस्था के फूल चढ़ाने वालों का उमड़ता हैं मेला
प्यार एवं सद्भावना का पैगाम देती लैला मजनूं की इस मजार पर श्रद्धा और आस्था के फूल चढ़ाने वालों में नव विवाहित, प्रेमी-प्रेमिकाओं की संख्या अधिक होती है। प्रेमी-प्रेमिकाओं द्वारा चद्दर, नमक, झाड़ू ,नारियल तथा प्रसाद आदि चढ़ाया जाता है। सीमा पर स्थित लेला मजनू की मजार किसी एक संप्रदाय की नहीं बल्कि सभी धर्म और जाति के लोगों में आकर्षण तथा आस्था का केंद्र बनी हुई है। जून के महीने में लगने वाले मेले में किसी एक धर्म या जाति के लोग नहीं बल्कि सभी धर्मां के लोग पहुंचते हैं। मजार पर हिंदू , मुस्लिम, सिख, इसाई सब धर्मों के लोग माथा टेकते हैं।
ये है कहानी लैला-मजनूं के प्यार की
यह धारणा प्रचलित है कि लेला मजनू ने पाकिस्तान से यहां आकर दम तोड़ा था। उसी धारणा के चलते न केवल राजस्थान बल्कि पंजाब और हरियाणा के प्रेमी जोड़े अपने प्रेम के सफल होने की कामना को लेकर यहां पहुंचते हैं। सरहदी क्षेत्र होने के कारण बीएसएफ और भारतीय सेना के जवानों के लिए भी यह मजार आस्था का केंद्र है। जून माह में लगने वाले लैला मजनू मेले में प्रेमी जोड़ो के महिला एवं पुरुष कबड्डी, वोलीबाल व कुश्ती प्रतियोगिता का भी आयोजन होता है। इसमें राजस्थान हरियाणा पंजाब की टीम में भाग लेती हैं। मेले में गायक कलाकारों द्वारा कव्वाली का कार्यक्रम भी पेश किया जाता है।
1971 तक बड़ी संख्या में आते थे पाकिस्तानी
मेला कमेटी के सदस्यों और अन्य बुजुर्गों के अनुसार तारबंदी से पूर्व पाकिस्तान से भी बड़ी संख्या में लोग यहां आते थे। लेकिन सन् 1971 के बाद मेले में पाकिस्तान से लोगों का आना लगभग बंद हो गया। हालांकि मजार के प्रति आस्था और श्रद्धा का आलम सीमा के इस तरफ से लगातार बढ़ता जा रहा है।