विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद आदिवासी अंचल डूंगरपुर जिला अब सरकार के साथ दिनों दिन विकास के नवीन आयाम स्थापित करता जा रहा है। डूंगरपुर राजस्थान का एक ऐसा अंचल है जहा विद्युत आपुर्ती करना सबसे कठिन कार्य है। पहाड़ी और छितराई हुई आबादी के बीच बिजली आपूर्ती करना सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती साबित हो रहा था। लेकिन इस चुनौती को वर्तमान जिला कलक्टर सुरेंद्र कुमार सोलंकी ने स्वीकार किया और क्षेत्र के हर घर में बिजली पहुंचाने का काम किया। शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी ने डूंगरपुर जिला कलक्टर सुरेंद्र कुमार सोलंकी को सिविल सर्विस डे के अवसर पर सोलर सखी प्रोजेक्ट से क्षेत्रों में नवाचार के लिए सम्मानित किया।
आजादी के बाद से नही थी क्षेत्र में बिजली
डूंगरपुर में बिजली की समस्या आम समस्या थी। आजादी के बाद से आज भी वहा ऐसे गांव व कस्बे है जहां लोग बिजली से महरूम है। घरों में बिजली नही होने के सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की पढ़ाई का होता था। जिला कलक्टर सोलंकी ने इस समस्या के समाधान के लिए क्षेत्र में सोलर प्रोजेक्ट लगाने का विचार किया लेकिन असमान धरातल और आधारभूत सुविधाओं के नाकाफी होने से यह कार्य मुश्किल था । सोलंकी ने हार माने बिना दूसरी तरकीब से क्षेत्रवासियों को विद्युत सप्लाई की योजना बनाई।
राजीविका और आईआईटी बॉम्बे के सहयोग से बनाएं सौर ऊर्जा लैंप
बिजली की समस्या से निजात पाने के लिए जिला प्रशासन-डूंगरपुर ने राजीविका (राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद) के सहयोग से जिले के दूरदराज के क्षेत्रों में सोलर सखी प्रोजेक्ट से द्वारा ‘सौर ऊर्जा लैंप’ वितरण कार्यक्रम शुरू करने की योजना बनाई। इसके लिए आईआईटी बॉम्बे को आमंत्रित किया गया। आईआईटी बॉम्बे इस से पहले भी एक लाख सौर अध्ययन लैंप भारत के विभिन्न भागों में वितरित कर चुका है । डूंगरपुर में लैम्प्स किफायती दरों में उपलब्ध कराने के लिए स्थानीय आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान किया गया। डूंगरपुर में अब तक 40 हजार से ज्यादा सौर ऊर्जा लैंप वितरित किये जा चुके है।
स्थानीय आदिवासी महिलाओं को किया प्रशिक्षण
यह पहल सौर उद्यम के स्थानीय विकास पर केंद्रित है, जिसमें लैम्प्स बनाने एवम बेचने के लिए महिला स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को प्रशिक्षण एवं परामर्श दिया गया है। इस परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा स्थानीय महिलाओं द्वारा सौर दुकानों का निर्माण करवाना था जहां लैम्प्स की मरम्मत और रखरखाव हो सके, के लिए प्रशिक्षित करना है ताकि नियमित रुप इन लैम्प्स का रखरखाव हो सके और समय पर इन्हे उपलब्ध करवाया जा सके।
आदिवासी महिलाएं बनी उद्यमी, कमा रही हैं आजिविका
यह एक अनोखी पहल है जिसमे एक आदिवासी और राजस्थान के सबसे पिछड़े क्षेत्र की महिलाओं को सशक्त किया जा रहा है जिससे वे सौर उद्यमी बन अपनी आजीविका कमा सके साथ ही साथ यह राजीविका के लिए भी भारी सफलता है जो की जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध करा रही है।
इस परियोजना के दौरान यह कल्पना की गई कि सीएलएफ द्वारा अर्जित आय का एक हिस्सा डूंगरपुर में एक मॉड्यूल निर्माण इकाई की स्थापना हेतु इस्तेमाल किया जाएगा जिससे लैंप संयोजन की प्रक्रिया को स्थानीय उत्पादन के अगले चरण तक ले जाया जा सके।