राजस्थान एक शांतिप्रिय प्रदेश के तौर पर देश में अपनी पहचान कायम करता है। हाल की के कुछ दौर में असामाजिक तत्वों द्वारा प्रदेश की शांति को भंग करने की नाकामयाब कोशिश की गई है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और राजस्थान सरकार प्रदेश में शांति और कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए सदैव तत्पर करती रहती है। हाल ही में हुए प्रतापगढ़ में एक कथित सामाजिक कार्यकर्ता की प्राकृतिक मौत को असामाजिक तत्वों ने हत्या करार कर दी और इस हत्या का दोष राजस्थान सरकार एवं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के माथें मंढ़ दिया। इस सामाजिक कार्यकर्ता की मृत्यु का यह पहलु लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ने पुलिस और प्रशासन से पहले यह तय कर दिया की यह राजस्थान सरकार द्वारा सोच समझ कर की गई हत्या है। आखिर इस देश की मीडिया को यह निर्णय लेने का हक किसने दिया ? क्या देश के पत्रकारों को अदालत या पुलिस की अब आवश्यकता नही है? क्या पुलिस के जांच करने को मीडिया कुछ नही समझती? राजस्थान में मीडिया द्वारा साम्प्रयिकता फैलाने के लिए इस तरह से अफवाहें उड़ाना सही है? इस सब सवालों के जवाब शायद कोई समाचार पत्र या पत्रकार देने में समर्थ नही हैं।
देश के मीडिया और पत्रकारों को निर्णय लेने या फैसला करने का हक किसने दिया?
बात राजस्थान के एक व्यक्ति की मौत की नही है। अक्सर देखा जाता है कि देश-प्रदेश में कोई भी घटना क्रम होता है मीडिया घराने या बड़े पत्रकार जो अपने दफ्तरों में बैठे बैठ किसी के खिलाफ बड़े ब़ड़े फैसले कर देते है उनको यह निर्णय लेने का हक किसने दिया। मामला जितना बड़ा होता नही है ये पत्रकार बंधु उसे बना देते है। आखिर क्यों इतनी जल्दी पत्रकार भाई-बहन किसी निर्णय पर पहुंच जाते है। क्या पत्रकारों की कोई सीमाएं नही होनी चाहिए। किसी भी संवेदनशील मामले पर प्रतिक्रिया से पहले उसके परिणामों की चिंता अवश्य करनी चाहिए।
क्या देश के पत्रकारों को अब अदालत या पुलिस की आवश्यकता नही है?
अभी तक किसी ने पत्रकारों को सीमाओं में बांधने की बाते नही की है, मीडिया की स्वतंत्रता ने देश में अराजकता का कई बार माहौल बनाया है। राजस्थान के प्रतापगढ़ मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। एक छोटे से मामले को राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों ने मुद्दा बना दिया और विरोधियों ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आखिर राज्य सरकार जनता के हितों के लिए काम करती है और बिना जांच के जब पत्रकार अपना आधारहीन निर्णय सुना देते है तो सांप्रदायिक दंगें होना लाजमी है। अब पत्रकारों को अदालत या पुलिस पर बिल्कुल भरोसा नही रहा हैं जिससे फैसले खुद ले रहे है।
प्रदेश में हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ होगी कार्रवाई
राजस्थान पर पहले पहलु खां और फिर बाड़मेर जैसे संवेदनशील मामले हुए है लेकिन राज्य सरकार ने अपनी समझदारी दिखाते हुए शांति से इनका निस्तारण किया था लेकिन मीडिया ने इन्हे भी उछालने में कोई कमी नही रखी थी। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पहले भी कहा हुआ है कि प्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने वालों को बख्शा नही जाएगा। उन्होने कहा है कि जो भी इस प्रकार के कार्यों में लिप्त रहते है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।