राजस्थान: अशोक गहलोत ने साधा पायलट पर निशाना – मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे हैं सचिन

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    Ashok Gehlot

    राजस्थान में विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं लेकिन उपचुनाव इसी महीने में हैं। उपचुनावों में कांग्रेस को अच्छे परिणामों का इंतजार है लेकिन इससे पहले ही पार्टी में गुटबाजी और मनमुटाव दिखना शुरू हो गया है। ऐसा लगने लगा है कि पार्टी धड़ा पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट में बंट गया है। Ashok Gehlot

    इसका असर शुक्रवार को देखने मिला जब गहलोत ने इशारों-इशारों में सचिन पायलट पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पार्टी के कुछ लोगों में प्रदेश इकाई के अध्यक्ष को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने की जो सोच है, वह अच्छी नहीं है। इससे पार्टी की छवि खराब होती है। गहलोत ने राज्य सरकार को हर मोर्चे पर विफल बताते हुए उपचुनाव में तीनों सीटें जीतने का दम भरा है। Ashok Gehlot

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    सीकर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान गहलोत ने कहा कि ‘प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के अध्यक्ष भी मुख्यमंत्री के सपने देखने लगे हैं और खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश करने लगे हैं। कांग्रेस में प्रचलित यह परंपरा ठीक नहीं है। यह पार्टी के लिए भी ठीक नहीं है। इसका फैसला हाईकमान करेगा।’ उनका यह बयान पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद आया है। Ashok Gehlot

    आगे गहलोत ने कहा कि ‘मैंने कभी पार्टी हाईकमान से उनकी कृपा दृष्टि या पद की मांग नहीं की। लेकिन मुझे अपनी निष्ठा का इनाम मिला और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल होने पर मुझे मुख्यमंत्री बनाया गया। मैं कांग्रेस हाईकमान के प्रति निष्ठावान बने रहेंगे और उनके आदेशों का पालन करूंगा।’ Ashok Gehlot

    पद्मावती विवाद भाजपा की सोची समझी चाल: गहलोत Ashok Gehlot

    पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट पर तो निशाना साधा ही है। भाजपा पर भी ध्रुवीकरण की राजनीति का आरोप लगाया है। पद्मावती विवाद को गहलोत ने भारतीय जनता पार्टी की सोची—समझी चाल बताते हुए कहा है कि देश में आपस में लड़ाकर नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। सरकार चाहती तो इससे समय रहते निपटा जा सकता था। सरकार ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस विवाद को अनावश्यक रूप से लम्बा खींचकर जातियों को आपस में लड़ाने का काम किया है। दोनों पक्षों को बैठाकर विवाद को दूर करवा सकती थी।

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