आखिर क्यों मरने के बाद भी सुर्खियां बटोर रहा है गैंगस्टर आनंदपाल सिंह?

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    क्या अपराधी की कोई कौम या जात होती है? क्या अपराधी किसी धर्म या मजहब का होता है? कुख्यात होना बेहतर है या विख्यात होना? कुछ ऐसे ही गंभीर सवालों के जवाब तलाशना आवश्यक हो गया है। अपराध करने वालों की कोई सीमा नही होती फिर भी अगर एक अपराधी समाज पर हावी हो जाए तो युवा वर्ग का आदर्श बन जाता है। राजस्थान में हाल ही में हुई पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद खुंखार और कुख्यात अपराधी आनंदपाल सिंह को आदर्श और समाज प्रणेता का रूप देने की कोशिश की जा रही है। अपराध जगत का सिरमौर बना आनंदपाल कैसे एक समाज को प्रेरणास्त्रोत हो सकता है? क्या आनंदपाल जैसे अपराधी ही युवाओं के आदर्श बन गए है? क्या उस पुलिस को विलेन बना देना चाहिए जो एक खुंखार अपराधी को गिरफ्तार कर समाज को अनचाही मुसीबतों से बचाने का काम करती है? एक अपराधी की मौत होती है और लोग पुलिस को अपराध के कठघरें में खड़ा कर देते हैं क्या यह सही है? खैर आनंदपाल एक अपराधी था और भविष्य में भी उसे अपराधी के तौर पर ही जाना जाएगा।

    आनंदपाल सिंह अपराधी था, जेल मे था

    आनंदपाल सिंह ने अपराध जगत में पहला कदम साल 2006 में अपने ही गांव के जीवन राम गोदारा को गोलियों से भूनकर हत्या कर रखा था। आनंदपाल सूबे के कुख्यात अपराधियों और शराब माफिया बलबीर बानूड़ा और शेखावाटी के गैंगस्टर राजू ठेहट के साथ मिलकर हत्या, लूट और ठगी के काम करने लगा। आनंदपाल पर लूट, हत्या, डकैती, गैंगवार जैसे करीब 30 से ज्यादा मामले दर्ज थे और उसका अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ ही रहा था। अकले 13 मामले तो डीडवाना थाने में ही आनंदपाल के खिलाफ चल रहे थे इसके अलावा सीकर में गोपाल भोगावट की हत्या को भी आनंदपाल ने ही अंजाम दिया था। पुलिस ने कई बाद आनंदपाल को पकड़ने की कोशिश की थी लेकिन हर बार यह भागने में कामयाब हो जाता था। साल 2012 में आनंदपाल को जयपुर जिले के फागी से असला-बारूद के साथ गिरफ्तार कर लिया था।

    पुलिस अभिरक्षा से फरार हुआ था आनंदपाल

    साल 2015 में अजमेर जेल से डीडवाना कोर्ट में पेशी से वापस लाते समय नागौर जिले के परबतसर के पास पुलिस टीम को नशीली मिठाई खिलाकर आनंदपाल अपने दो साथियों श्रीवल्लभ और सुभाष मुंड के साथ फरार हो गया था। यह हार्डकोर अपराधी करीब 13 मामलों में भगौड़ा था। आनंदपाल के पुलिस अभिरक्षा से भागने के बाद पुलिस प्रशासन हरकत में आ गया और इसे पकड़ने के लिए पुलिस ने कई जगह दबिश दी। फरार होने के बाद पुलिस ने इसे जिंदा पकड़ने के लिए 5 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया। पुलिस को कई बार आनंदपाल की सूचनाएं मिली जिन पर दबिश भी दी लेकिन हर बार यह कुख्यात अपराधी हथियारों के दम पर पुलिस को चकमा देकर फरार हो जाता था।

    नागौर में पकड़ा जाता लेकिन पुलिस पर फायरिंग कर हुआ था फरार

    दिसंबर 2016 में आनंदपाल के नागौर जिले में होने की सूचना स्थानीय पुलिस को मिली। पुलिस ने आनंदपाल को पकड़ने के लिए जसवंत गढ़ टीमें भेजी लेकिन यह खुंखार अपराधी पुलिस की गाड़ी पर फायरिंग पर फरार हो गया था। उस समय पुलिस का एक जवान गोली लगने से शहीद हो गया था। आनंदपाल को सोसायटी का हीरो बताया गया जबकि शहीद हुए पुलिसकर्मियों को विलन के तौर पर पेश किया गया। आनंदपाल जैसे लोग पुलिस पर फायरिंग कर देते है हमारे जवान शहीद हो जाते है लेकिन फिर भी आज का हमारा युवा हत्यारों को महीमामंड़न करता है। क्या इस मद पर शर्म नही आती की एक पुलिस का जवान देश और समाज हित में शहीद हो जाता है लेकिन एक कुख्यात अपराधी पुलिस पर फायरिंग कर फरार हो जाता है।

    आनंदपाल के भाईयों से मिली थी आनंदपाल की सूचना

    गैंगस्टर आनंदपाल सिंह को राजस्थान सहित देश के पांच राज्यों की पुलिस तलाश कर रही थी। 25 जून को आनंदपाल के भाई विक्की और गुड्डु को हरियाणा के सिरसा में होने की सूचना मिली थी। राजस्थान की पुलिस ने हरियाणा में इन दोनों को गिरफ्तार करने के लिए दबिश दी और दोनों को गिरफ्तार कर लिया था। दोनों भाईयों से ही पुलिस को आनंदपाल के राजस्थान के चुरू जिले के मालासर में श्रवण सिंह के घर पर छुपे होने की बात बताई। पुलिस ने दोनों भाईयों के मालासर स्थित घर की तस्दीक की। इस पर पुलिस ने आनंदपाल को गिरफ्तार करने के लिए टीम मालासर भेजी।

    पुलिस और आनंदपाल की मुठभेड़ में मारा गया था आनंदपाल

    करीब 2 साल से ज्यादा समय से फरार हुए कुख्यात आनंदपाल को पकडने के लिए स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की टीम, नागौर जिले की पुलिस, स्थानीय पुलिस और क्युआरटी की टीमों को मौके पर बुलाया गया। रात 10:30 पर पुलिस ने जिस घर में आनंदपाल छुपा हुआ था उसकी घेराबंदी की और आनंदपाल को सरेंडर करने के लिए कहा। लेकिन आनंदपाल ने सरेंडर नही कर पुलिस पर ताबड़तोड़ एके47 से गोलियां बरसाना शुरु कर दिया। आनंदपाल द्वारा कि गई फायरिंग में पुलिस के दो जवान गंभीर रुप से घायल हो गये। स्थानीय लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को भी जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। आनंदपाल द्वारा एके47 से करीब 100 राउंड फायरिंग की गई जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की जिसमें आनंदपाल की मौत हो गई। पुलिस आनंदपाल को जिंद पकड़ना चाहती थी लेकिन आनंदपाल द्वारा की जा रही अंधाधुंद फायरिंग के कारण पुलिस को जवाब में गोली चलानी पड़ी। आनंदपाल और पुलिस में हुई मुठभेड़ में आनंदपाल सिंह मारा गया।

    आनंदपाल के लिए नही शहीदों के लिए दिखाएं सहानुभूति

    आनंदपाल इस समाज का दुर्दांत अपराधी था। हर अपराधी जन्म से अपराधी नही होता लेकिन जब वो अपराध के रास्ते पर चलता है तो उसकी कोई जाती या धर्म नही होता। कुछ लोग आनंदपाल सिंह की मौत का लाभ उठाने के लिए इसे मुद्दा बना रहे है। राजनीतिक हित साधने के लिए आंनदपाल के प्रति सहानुभूति दिखाने वालों से आग्रह है कि उन सिपाहियों जो कि उस रात बूरी तरह घायल हुए ,उनकी भी जाति है , उनका भी परिवार है , पत्नि है , माँ है , बच्चे है ,क्या पिछले दिनों मे उनकी चर्चा किसी ने कि क्या यह जानने कि कोशिश कि उस परिवार पर क्या गुज़र रही है। राजस्थान में जाट और राजपूत सक्षम और व्यापक समाज है। आजादी के बाद देशहित में प्राण न्यौच्छावर करने वाले जाबांजों की लिस्ट बनाई जाए तो दो तिहाई से अधिक शहीद इन दोनों समाजों से ही निकलते है। कैसी बिडम्बना है कि दोनों समाजो के युवा अपनी प्रेरणा आनंदपालिया, राजुड़ा, बानूड़ा, बलबिरीया, शेरसिहं राणा, चतरिया, दारिया जैसे दुर्दांत अपराधियो में तलाश रहे है। समाज के इन अपराधियों में नायकत्व महसूस कर रहे युवाओं की दिशा और दशा क्या होगी, सहज ही कल्पना की जा सकती है। काश, युवा लोग अपना नायक देश के लिये प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीदों में तलाशते।

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