वीर योद्धाओं को जन्म देने वाली राजस्थान की धरती ने जहां महाराणा प्रताप और वीर दुर्गादास जैसे अनेकों महान वीरों को जन्म दिया, वहीं भक्त शिरोमणि मीराबाई की भी जननी रही है। इन सभी के बीच मरूधरा की भूमि से एक नाम ऐसा भी है जिसमें ये दोनों गुण मौजूद है। उनका नाम है वीर बहादुर हणूत सिंह। Lt. General Hanut Singh
जी हां, ‘संत जनरल’ के नाम से मशहूर और परमविशिष्ट सेवा मेडल व महावीर चक्र से सम्मानित ले. जनरल हणूत सिंह का जन्म 6 जुलाई, 1933 को बाड़मेर में लेफ्टिनेंट कर्नल अर्जुन सिंह के घर जसोल में हुआ था। देहरादून के कर्नल ब्राउन स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1949 में एनडीए में दाखिल हुए। यहां वह सैकंड लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद वह सीढ़ी दर सीढ़ी आगे प्रमोशन पाते रहे। ले. जनरल हणूत सिंह के विशेष योगदान को देखते हुए भारतीय सेना ने उन्हें अनूठा सम्मान देने का फैसला किया है। आइये जानते हैं ‘संत जनरल’ और सेना के इस सम्मान के बारे में.. Lt. General Hanut Singh
1971 के बसंतर युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे हणूत सिंह ने.. Lt. General Hanut Singh
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए बसंतर के युद्ध में विशेष योगदान देने वाले महावीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट जनरल हणूत सिंह को सेना ने अनूठा सम्मान दिया है। ‘संत जनरल’ के नाम से मशहूर रहे ले. जनरल सिंह के सम्मान में भारतीय सेना ने एक युद्धक टैंक उनके पैतृक गांव जसोल भेजा है। बाड़मेर जिले के जसोल स्थित पैतृक गांव में उनके सम्मान में बनने वाले स्मारक के साथ इस टैंक को स्थापित किया जाएगा। बता दें, लेफ्टिनेंट जनरल सिंह की अगुआई में भारतीय सेना ने 1971 में बसंतर के युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। Lt. General Hanut Singh
उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने करीब 48 पाक टैंकों को नष्ट कर दिया था। जिसके बाद पाक सेना के सामने हार स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं बचा। युद्ध में हनूत सिंह के कौशल से प्रभावित पाकिस्तान की यूनिट ने भारत की इस रेजीमेंट को फक्र-ए-हिंद के टाइटल से नवाजा जो कि भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार किसी विरोधी सेना की ओर से नवाजा गया था। युद्ध में उन्हें बहादुरी दिखाने के लिए महावीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था। उल्लेखनीय है कि सिंह आजाद भारत के 12 महान जनरल की श्रेणी में शामिल थे। Lt. General Hanut Singh
17 पूना कैवेलरी रेजीमेंट ने निर्माणाधीन स्मारक के लिए भेजा टैंक
ले. जनरल हणूत सिंह के पैतृक गांव में उनके सम्मान में एक युद्ध स्मारक की स्थापना पिछले साल शुरू की गई थी। अब ले. जनरल सिंह की रेजिमेंट 17 पूना कैवेलरी ने निर्माणाधीन स्मारक के लिए एक टैंक को भेजा है, जिसको उनकी आदमकद मूर्ति के पास रखा जाएगा। बता दें, ले. जनरल सिंह पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह के चचेरे भाई थे।
ले. जनरल सिंह ने 1971 में बसंतर की लड़ाई में अपनी वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट को धूल चटाई थ। इस लड़ाई में ले. जनरल सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना की 17 पूना कैवेलरी रेजीमेंट ने पाकिस्तान की करीब ढाई टैंक रेजिमेंट को नष्ट किया था। अब उनकी रेजिमेंट उनके साहस व आध्यात्मिक जीवन को लेकर उनकी एक गैलरी का भी निर्माण करवा रही है।
आजीवन रहे बाल-ब्रहमचारी, सिपाही से बन गए साधु
आर्मी रेजीमेंट में हणूत सिंह गुरूदेव के नाम से जाने जाते थे। सभी लोग उन्हें यह कहते हुए सम्मान देते थे। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और विवाह नहीं किया, उनसे प्रभावित होकर उनकी यूनिट के अधिकतर अधिकारियों ने भी शादी नहीं की। उनका बचपन से ही आध्यात्म व योग की ओर रूझान था। सेना के दौरान उनका परिचय देहरादून के शैव बाल आश्रम से हुआ। सेना से रिटायर्ड होने के बाद उन्होंने वहीं रहना शुरू कर दिया। उन्हें गुरूजी के नाम से जाना जाता था।
शराब तथा मांस के वह सख्त खिलाफ थे। देहरादून के बाल शिवयोगी से प्रभावित होकर उन्होंने उनसे दीक्षा ली। इसके बाद वह वहीं बस गए। वह वर्ष में दो महीने के लिए जोधपुर के बालासति आश्रम में आया करते थे। वहां भी वह परिवार से अधिक बात नहीं करते थे और अपनी आध्यात्मिक साधना में ही लीन रहा करते थे।
स्मारक निर्माण की देखरेख कर रहे रिश्ते में उनके भांजे और गोदपुत्र कुंवर नृपेंद्र सिंह ने बताया कि ले. जनरल हणूत सिंह ने सैनिक के साथ एक साधु का जीवन भी जीया। इस स्मारक के निर्माण के पीछे उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को लोगों के बीच लाना है। ले. जनरल सिंह के परिवार के सदस्य और शिव विधानसभा क्षेत्र से विधायक मानवेन्द्र सिंह जसोल ने बताया कि सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने अपना आध्यमिक जीवन शिवबाल योगी आश्रम देहरादून में ही बिताया था।
सर्दियों के मौसम में वे दो महीने के लिए यहां बाला सती आते थे। सेना के बाद उन्होंने अपना जीवन एक आध्यात्मिक संत के रूप देहरादून में बिताया था। वहां स्थित आश्रम में ही उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने अपनी पुस्तक में किया हणूत सिंह की बहादुरी का जिक्र
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने अपनी पुस्तक ‘लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी’ में ले. जनरल हणूत सिंह के बारे में लिखा है, “हणूत सिंह को भारतीय सेना के सर्वोच्चा योद्धा के रूप में सदैव याद किया जाएगा। उनकी सादगी, साहस, जुझारूपन, तर्कशक्ति, कार्य के प्रति लग्न और नैतिकता ऐसे गुण है जो भारतीय सेना के हर नए आने वाले सैनिक और अधिकारी के लिए आदर्श है।“ बता दें, ले. जनरल हणूत सिंह ने ‘FLAG HISTORY OF ARMOURED CORPS’ किताब की रचना भी की।