कांग्रेस के पोस्टर बॉय राहुल गांधी वैसे तो हर चुनाव प्रचार में जोर-शोर से अपनी पार्टी की उपलब्धियां और अपने पूर्वजों की स्वतंत्र संग्राम के दौरान दिए गए बलिदान गिनाने हेतु रैलियों में पहुंच जाते हैं परंतु धौलपुर उप-चुनाव के प्रचार में उनको किसी ने दूर-दूर तक नहीं देखा। बात हैरान करने वाली है कि जो उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच साख का सवाल बन गए हैं, उनसे आखिर जूनियर गांधी ने किनारा क्यों कर लिया है? सवाल पेचीदा ज़रूर है पर उसका उत्तर स्पष्ट है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, 2013 तक राजस्थान कांग्रेस की बागडोर पूरी तरह से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथ में थी परंतु 2013 विधानसभा चुनाव के बाद वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हाथ मिली करारी शिकस्त ने उनकी सत्ता बुरी तरह से हिला दी। गहलोत, जो कभी सोनिया गांधी के अभिन्न हुआ करते थे, उनका कद पार्टी के भीतर थोड़ा कम हो गया। 2015 के बाद सोनिया जी ने पार्टी की बागडोर पूरी तरह से अपने पुत्र राहुल गांधी के हाथों में सौंप दी। ये बात जग जाहिर है कि राहुल बाबा का युवा कार्यकर्ताओं और नेताओं की तरफ झुकाव ज्यादा है। इस कारणवश आगामी 2019 चुनाव के लिए गांधी ने सचिन पायलट को आगे करने का ठान लिया। यही नहीं, राजनीति में ‘परिवार एकाधिकार’ खत्म करने के नाम पर उनके पुत्र वैभव गहलोत को भी टिकट देने से मना कर दिया गया था।
फिर क्या था इस बात से बिफरे गहलोत ने इसका ठीकरा फोड़ा पायलट के सर और दोनों नेताओं के बीच मानो जंग सी छिड़ गयी। अभी भी धौलपुर चुनाव प्रचार की कमान पायलट के हाथों में है जिससे गहलोत बुरी तरह से आहात हैं और उन्होंने पार्टी आलाकमान से गुहार लगायी है। हर दिन के साथ गहलोत-पायलट के बीच दूरियां निरंतर बढ़ती चली जा रही हैं और राहुल इस विवाद में बिलकुल पड़ना नहीं चाहते जिस वजह से उन्होंने धौलपुर से दूरियां बढ़ा ली हैं।
खबर ये भी है कि राहुल गांधी को धौलपुर विजय से कुछ खास वास्ता नहीं है। अगर बात पूरे राज्य कि होती तो सोचा भी जाता परंतु एक छोटे से जिले में होने वाले उप-चुनाव से पार्टी को कोई खास लाभ नहीं प्राप्त होगा इसलिए राहुल इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहते।
कांग्रेस के पास सिवाय भाजपा सरकार की खामियां और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी पर सवाल उठाने के और कोई मुद्दा नहीं है। इसके विपरीत भाजपा ने गत तीन वर्षों में राजस्थान में हुए विकास के कारण लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली है। ऐसे में कांग्रेस के जीतने के आसार ना के बराबर ही हैं। ऐसे में राहुल बाबा धौलपुर में कदम रख कर बाद में कांग्रेस को मिली हार का दोष अपने सर नहीं लेना चाहते।
देश-विदेश घूमने वाले राहुल बाबा धौलपुर तथा राजस्थान की जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। उनके पार्टी में कभी राजेश पायलट जैसे बड़े, दूरदर्शी लीडर भी हुआ करते थे जो लोगों से मिलते-जुलते थे और उनकी समस्या सुलझाने का प्रयास करते थे परंतु अफ़सोस की बात ये है कि राजेश जी से उनके पुत्र सचिन और राहुल बाबा दोनों ने ही कुछ नहीं सीखा। पायलट यदा कदा चुनावों के आस-पास राजस्थान में कभी दिख भी जाते हैं परंतु राहुल बाबा को विदेश यात्रा से फुर्सत ही नहीं मिली अतः उन्होंने राजस्थान का कभी रुख नहीं किया। ऐसे में उन्हें ना तो धौलपुर की समस्या और ना ही वहां के लोगों के बारे में कोई जानकारी है।
पायलट के बार-बार बुलाने पर भी ‘निजी कारणों’ के चलते वे राजस्थान नहीं पधारे। ऐसे में पार्टी के नेताओं को भी समझ नहीं आ रहा कि राहुल को एक ‘जिम्मेदार प्रधानमन्त्री उम्मीदवार’ के तौर पे कैसे आगे किया जाये। अभी फिलहाल पार्टी इसी उधेड़बुन में लगी है कि बुजुर्ग उम्मीदवार तथा उदासीन युवा नेताओं के चलते वे धौलपुर कैसे जीत पाएंगे।