राज्य में भाजपा के बढ़ते वर्चस्व को प्रदेश कांग्रेस के नेतागण पचा नहीं पा रहे पा रहे हैं। प्रदेश में राजनैतिक स्तर पर पूरी तरह से पस्त हो चुकी कांग्रेस पार्टी अब खिसियानी बिल्ली की तरह खम्बा नोच रही हैं। पार्टी के भूतपूर्व और स्वघोषित राजनेता विपक्ष की ज़िम्मेदारी निभाने में भी नाकाम रहे हैं। सुशासन का संकल्प लेकर उसे पूरा करने में जुटी प्रदेश सरकार के विकास कार्यो की व्यर्थ आलोचना करना ही अब कांग्रेस पार्टी का काम रह गया हैं। विगत कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुई घोटालेबाजी के कारण जनता का इनसे विश्वास उठ गया हैं। वर्तमान सरकार के कार्यो में अड़ंगे डालना और विधानसभा में बेवजह हंगामा करने की इनकी आदते, प्रदेश के विकास को लेकर कांग्रेस पार्टी के नज़रिये की अभिव्यक्ति हैं।
प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का वज़ूद
चुनाव चाहे राज्य विधानसभा के हो, नगर-निगम के हो या उपचुनाव, प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को सिरे से नकार दिया हैं। राज्य की 200 विधान सभा सीटों में से 162 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं, वहीँ महज़ 24 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। शासन के तीसरे स्तर नगर-निगम और अधिकांश पंचायत समिति में भी भाजपा बहुमत में हैं। हालिया धौलपुर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी शोभारानी कुशवाह को भारी मतों से जीत दिला, जनता ने प्रदेश सरकार के उन्नत प्रयासों पर भरोसे की मुहर लगा दी हैं। आज राजस्थान के जनवासी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सुशासन के रथ को आगे बढ़ाने में सरकार के साथ हैं।
कई धड़ों में बट चुकी हैं, कांग्रेस
प्रदेश की राजनीति के लिए आज कांग्रेस एक पुरानी बात बनकर रह गयी हैं। पार्टी के अंदर राजनैतिक प्रभाविता की जंग छिड़ी हुई हैं। आपसी खींचतान के चलते कांग्रेस का कई खेमों में बटवारा हो चुका हैं। पार्टी का एक गुट कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के साथ हैं, तो दूसरा खेमा अशोक गहलोत का समर्थक हैं। इसी बीच कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता सीपी.जोशी के साथ खड़े नज़र आते हैं। आतंरिक हलचलों से जूझती कांग्रेस जनता से जुड़ने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई हैं।
कभी राजस्थान की मुख्य राजनैतिक पार्टी होने वाली कांग्रेस, अपने काले कारनामो के चलते आज प्रदेश की राजनीति में अपनी ज़मीन ढूंढती नज़र आ रही हैं। राज्य के विकास को ताक पर रखकर अपनी स्वार्थनीति पर चलने वाली कांग्रेस पार्टी आज अपने अस्तित्व से ही जूझती नज़र आ रही हैं।