मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस बात पर भरोसा है कि 50 दिनों की परेशानी झेलने के बाद जब देशवासी वर्ष 2017 में प्रवेश करेंगे तो देश में न काला धन रहेगा और न भ्रष्टाचार। बाजार में जो मंहगाई है, वह भी कम हो जाएगी और आम व्यक्ति को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। मुझे पता है कि नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी की घोषणा से देश का आम व्यक्ति बेहद परेशान है। व्यापार ठप हो गया है तो श्रमिक को मजदूरी नहीं मिल रही है। बैंकों के बाहर लंबी कतारों से हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है। 13 नवंबर को गोवा और 14 नवंबर को को गाजीपुर में भावुक होकर मोदी ने देशवासियों से जो अपील की, उसका असर मुझ पर भी हुआ। मुझे भी लगा कि अपने देश के प्रधानमंत्री की आंखों में आंसू नहीं आने चाहिए।
मेरे पास 8 नवंबर को जो 500 और एक हजार रुपए के नोट थे, उनसे मैंने अब तक अपने घर का खर्चा चला लिया। मुझे पता है कि बैंक अथवा एटीएम से पैसे निकालना अभी भी बहुत कठिन है। इसलिए 15 नवंबर को मैंने घर में रखी गुल्लक को भी फोड़ दिया। इस गुल्लक में से 1, 2, 5 और 10 रुपए के जो सिक्के निकले, उनका कुल जोड़ 900 रुपए रहा। मुझे उम्मीद है कि इस राशि से कुछ दिन घर खर्चा और चल जाएगा। हो सकता है कि अगले दो-चार दिनों में बैंकों में हालात सामान्य हो जाए। मैंने मेरी गुल्लक की बात इसलिए लिखी है क्योंकि ऐसे कार्य देश के अधिकांश परिवारों में हो रहे हैं। परिवार की महिलाओं ने जो छोटी-छोटी बचत कर धनराशि एकत्रित की है, उसे इन मुसीबत के दिनों में काम में लिया जा रहा है। ऐसे अनेक परिवार होंगे, जिनके घरों में 10 रुपए अथवा 100 रुपए के नए नोट की गड्डी रखी होगी। असल में अल्प बचत भारत की सामाजिक व्यवस्था है। अब नरेन्द्र मोदी यह चाहते हैं कि हमारी अल्प बचत वाली सामाजिक व्यवस्था घरों से निकल कर बैंकों में आ जाए। चूंकि यह कोई बेइमानी नहीं है इसलिए मध्यमवर्गीय परिवार अपनी इस राशि को भी बैंकों में जमा करवा रहा है। विपक्षी दल और टीवी चैनल मुसीबतों को लेकर कितना भी हो-हल्ला कर ले, लेकिन आम व्यक्ति को नरेन्द्र मोदी की बात पर ही यकीन है। लोगों को लगता है कि जनवरी में अच्छे दिन आ ही जाएंगे।
(एस.पी.मित्तल)