अखिलेश बने ‘समाजवादी दंगल’ के ‘सुल्तान’, मुलायम को पैदल करनी होगी युपी चुनाव की यात्रा

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समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई समाप्त हो चुकी है। सोमवार को चुनाव आयोग ने अपना फैसला दे दिया है। चुनाव आयोग को मुलायम और अखिलेश के बीच अखिलेश का पलड़ा ज्यादा भारी नजर आया। चुनाव आयोग ने अपने फैसले में मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव को सपा का असली हकदार माना है और चुनाव चिह्न साइकिल और राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर उनके नाम कर दिया है। अब आइए जानते हैं कि आखिर वे कौन सी बातें हैं जिनके चलते अखिलेश ‘समाजवादी दंगल’ में अखिलेश ‘सुल्तान’ बनकर उभरे। अखिलेश ने अपने दावे में तमाम सपा नेताओं के एफिडेविट भी जमा करवाए थे। रामगोपाल द्वारा चुनाव आयोग में पेश किए गए दस्तावेजों पर 11 राज्यसभा सांसदों और 4 लोकसभा सांसदों के हस्ताक्षर थे। इसके अलावा पार्टी के 228 विधायकों में से 195 विधायकों का अखिलेश के समर्थन में हस्ताक्षर था। 68 एमएलसी में से 48 के एफिडेविट अखिलेश के पक्ष में थे। एफिडेविट में कहा गया था कि सभी ने 1 जनवरी 2017 को हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल थे. समाजवादी पार्टी में छिड़े दंगल के बीच पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने 1 जनवरी 2017 को आपातकालीन राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया था। अधिवेशन में ध्वनिमत से अखिलेश यादव को पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुलायम सिंह यादव को पार्टी संरक्षक चुना गया था।

मुलायम का कमजोर दावा रहा, नही किया हलफनामा पेश

मुलायम का पूरा जोर रामगोपाल द्वारा बुलाए गए आपातकाल अधिवेशन को अवैध घोषित करने पर था। मुलायम सिंह के मुताबिक रामगोपाल के अधिवेशन बुलाने से पहले उन्हें पार्टी से बाहर किया जा चुका था। इसके अलावा मुलायम की दलील थी कि राष्ट्रीय अधिवेशन सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष ही बुला सकता है। बताया जा रहा है कि मुलायम सिंह ने चुनाव चिह्न साइकिल पर दावा भी पेश नहीं किया था। चुनाव आयोग ने अपने फैसले में साफ बताया है कि पार्टी के संविधान की धारा 15 (10) के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दो महीने में कम से कम एक बार जरूर बुलाई जानी चाहिए। जबकि 25 जून 2014 के बाद सपा में एक भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं बुलाई गई। यह साफ तौर पार्टी के संविधान का उल्लंघन है। इसके अलावा पार्टी के संविधान की धारा 20 के मुताबिक लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों के लिए टिकट वितरण पर फैसला सिर्फ और सिर्फ सात सदस्यीय संसदीय बोर्ड ही ले सकता है। यूपी चुनाव के मद्देनजर पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने जो लिस्ट जारी की उससे पहले संसदीय बोर्ड ने एक भी मीटिंग नहीं की। यह भी पार्टी के संविधान का उल्लंघन ही है।

मुलायम गुट का तर्क, मामला बाप बेटे के बीच में

पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अब चुनाव चिह्न कोई भी हो, चुनाव वही प्रत्याशी लड़ेंगे जिनके टिकट उनके दस्तखत से जारी होंगे। मुलायम सिंह यादव ने दावा किया कि ये मामला उनके बाप-बेटे के बीच में है, बेटे को कुछ लोगों ने बहका दिया। उन्होंने रामगोपाल यादव का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों इशारों में बहुत कुछ कह दिया। इससे पहले मुलायम सिंह यादव अमर सिंह और शिवपाल यादव के साथ चुनाव आयोग पहुंचे थे। चुनाव आयोग में उन्होंने पार्टी संविधान का हवाला देते हुए दावा किया कि वही हैं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिलेश कैंप के दावों में कोई दम नहीं है।

राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष को नही हटाया जा सकता

मुलायम ने चुनाव आयोग से कहा कि पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष को हटाया नहीं जा सकता है। अधिवेशन बुलाने के लिए कम से कम 30 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य है, जिसका पालन नहीं किया गया। मुलायम गुट ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की एक प्रक्रिया है, जिसका पालन नहीं किया गया। रामगोपाल यादव को पहले से ही उनके पद से हटा दिया गया था। लिहाजा वो कोई रेजोल्यूशन नहीं ला सकते। उनके पार्टी से जुड़ने का ऐलान सिर्फ ट्विटर के जरिए ही हुआ था, जो कि मान्य नहीं हो सकता। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को हटाने का कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया था। लिहाजा नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने का औचित्य ही नहीं पैदा होता। अखिलेश कैंप जिनके समर्थन का दावा कर रहा है, चुनाव आयोग उनका फिजिकल वैरिफिकेशन करवाए।

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