धौलपुर उपचुनाव में हार के बाद संभावनाओं के अनुसार कांग्रेस नेताओं के असर और उनके अनुसार मिले वोटों को लेकर पार्टी के अलग अलग स्तरों पर चर्चाएं चल निकली है। सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है तो उन नेता पुत्रों की जो धौलपुर में सक्रिय तो नजर आए लेकिन चुनाव में हार के लिए उनका असर ज्यादा रहा। चर्चा का केंद्र भी यही है कि क्या उनके प्रचार में रहने से पार्टी उम्मीदवाद को कोई फायदा हुआ, यदि हा, तो कितना और नही तो फिर उनको पार्टी में अहमियत क्यो मिली हुई है। हालांकि पायलट ने इन नेता पुत्रों को संगठन में खुद को साबित करने के मौके दिए हैं लेकिन अभी तर इसके परिणाम सकारात्मक नही दिखे।
इन पांच नेता पुत्रों के नाम रही धौलपुर हार
धौलपुर उपचुनाव में नेता पुत्रों की बात हो रही है तो सबसे अगे तीन नाम हैं। पहला नाम धौलपुर से कांग्रेस उम्मीदवार बनवारी लाल शर्मा के पुत्र एवं धौलपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक शर्मा है। दूसरे रोहित बोहरा जो प्रद्युम्नसिंह के पुत्र और जिला कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और तीसरे नंबर पर वैभव गहलोत हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुरत्र और प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री व धौलपुर के प्रभारी है। इनके अलावा धौलपुर चुनाव से प्रदेश की आईटी सेल संभाल रहे पीसीसी सचिव दानिश अबरार, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष औऱ पीसीसी सचिव बालेन्दुसिंह शेखावत, पूर्व सांसद द्वारका प्रसाद बैरवा के पुत्र प्रशांत बैरवा और पूर्व मंत्री परसराम मोरदिया के पुत्र राकेश मोरदिया भी धौलपुर में पार्टी की और से जिम्मेदारियां संभाल रहे थे। ऐसे में जब परिणाम कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहे है तो इन नेता पूत्रों के सहयोग की चर्चा भी अवश्य की जानी चाहिए।
भविष्य पर लगा प्रश्नचिन्ह
इन चर्चाओं में अगर बात करें अशोक शर्मा की तो उनके लिए यह हार सबसे खराब रही है। अशोक एक बार खुद कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर हार का सामना कर चुके है और इस हार के बाद उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। जहां तक उपचुनाव में उनके प्रभाव की बात करें तो उनका प्रभाव भी उन्ही के वोटरों तक सीमीत रहा, जो बनवारी लाल शर्मा के साथ थे, वे अपने दम पर नए वोटरों को आकर्षित करने में असफल ही रहे। जहां तक रोहित बोहरा की बात है तो वे पूरे चुनाव में सचिन पायलट के सारथी के तौर पर साथ रहे और चर्चा यह रही कि प्रद्युम्न सिंह ने उन्हे धौलपुर के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने का भरसक प्रयास किया। पूरे चुनाव में उनका कांग्रेस अध्यक्ष के साथ रहने और सभाओं के संचालन का जिम्मा लेने के बावजूद वे अपने गृहनगर में कांग्रेस के लिए खुद को फायदेमंद साबित नही कर सके।
सिर्फ उपस्थिती दर्ज करने के लिए रहे मैदान में
वैभव गहलोत जिले के प्रभारी महामंत्री के तौर पर जिले में कई बार जाते रहे और प्रचार में भी वे मौजूद रहे, लेकिन उनका असर उनके समुदाय में भी नजर नही आया। सभाओं में उनकी कांग्रेस को जीत दिलाने की अपील कहीं काम करती नजर नही आई। इसके बाद अगर प्रदेश कांग्रेस के आईटी संयोजक दानिश अबरार, बालेन्दु सिंह और प्रशांत बैरवा की करे तो इन नेताओं ने अपनी उपस्थिती कांग्रेस नेताओं के सामने तो जमकर कराई लेकिन जनता में इनका असर कहीं दिखाई नही दिया।
खुद हार चुके हैं अपने गृहक्षेत्रों से
इन नेता पुत्रों की चर्चा ज्यादा होने का कारण यह भी है कि यह सभी आगामी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी की दौड़ दौड़ते नजर आ रहे है। आपकों बता दे कि धौलपुर से अशोक शर्मा, सवाई माधोपुर से दानिश अबरार और निवाई से प्रशांत बैरवा से हार का मुंह भी देख चुके है।
Vasundhrara Raje Ji …. Aap Ese he Kaam Karte Rahiye….. hm Apke sath Hain
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