राजस्थान में उपचुनाव 29 जनवरी को हैं जबकि विधानसभा चुनावों में भी कुछ ही महीने शेष बचे हैं। ऐसे में नए नवेले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की राजस्थान की राजनीति को लेकर चिंता जायज है। एक तरफ पार्टी की गिरती साख बचानी है और दूसरी तरफ राजस्थान विधानसभा के चुनाव। लेकिन राहुल गांधी का असली सिरदर्द कांग्रेस की साख नहीं बल्कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। ashok gehlot
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अपने राजनीतिक करियर के नाजुक दौर से गुजर रहे अशोक गहलोत ने हाल ही में मीडिया के सामने खुलकर पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा, ‘जिस भी व्यक्ति को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, वह खुद को भविष्य के सीएम (मुख्यमंत्री) के रूप में देखने लगता है। कई लोग मीडिया की मनगढ़ंत खबरों पर विश्वास करना शुरू कर देते हैं और मन ही मन हवाई किले बनाने लगते हैं। इससे मैसेज ठीक नहीं जाएगा।’ ashok gehlot
गहलोत अपने इन थोड़े से शब्दों में काफी कुछ कह गए हैं जिससे पार्टी नेताओं की कलह खुलकर सामने आ रही है। एक तरफ अशोक गहलोत हैं जो पुराने राजनीति अनुभव वाले नेता हैं जिनकी सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक सीधी पहुंच है। वहीं दूसरी ओर युवा नेता सचिन पायलट हैं जिनकी पैठ युवाओं में गहराई हुई है। कांग्रेस महासचिव बनाए जाने के बाद गहलोत को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का उपाध्यक्ष बनाने की चर्चाए भी जोरों पर है जिसका फैसला राजस्थान उपचुनावों के बाद किया जा सकता है। ऐसे में गहलोत का कद तो बड़ा हो जाएगा लेकिन अफवाह यह भी जताई जा रही है कि ऐसा करने से गहलोत को राजस्थान की राजनीति से दूर रखने की कोशिश की जा रही है। ashok gehlot
यही वजह है कि गुजरात चुनावों से ठीक पहले अशोक गहलोत को गुजरात का कांग्रेस चुनाव प्रभारी बनाया गया था। 2013 के राजस्थान चुनावों में हार के बाद गहलोत ने इस्तीफा दिया और उसके तुरंत बाद सचिन पायलट को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया। अजमेर लोकसभा उपचुनाव में आखिर तक सचिन पायलट को प्रत्याशी बनाने की खबरों के बीच ऐसा ही लगने लगा था कि अगले चुनावों में पार्टी की कमान फिर से गहलोत के पास आ गई है लेकिन आखिरी क्षणों में रघु शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर राहुल गांधी ने फिर से दोनों प्रमुख नेताओं के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर दी है। ashok gehlot
ऐसे में ‘कौन होगा कांग्रेस का मुख्यमंत्री प्रत्याशी’ पर फिर से बहस गर्म हो गई है। सचिन को एक प्रतिद्वंदी मान अब रणनीतिक तौर पर गहलोत कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। मौके की नजाकत भांप कर गहलोत सीकर में अपने मन की बात कहने से नहीं चूके। हालांकि सचिन ने इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष इस बात को पूरी तरह समझ चुके हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने से पहले पार्टी के अंदर इन दो प्रमुख नेताओं में मुकाबला कड़ा होने वाला है। ashok gehlot
हालांकि राहुल गांधी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री को एक साइड बैठाना ज्यादा मुश्किल नहीं है लेकिन राहुल को यह भी नहीं भूलते बनता है कि जमीनी स्तर पर भी गहलोत गहरी पैठ रखते हैं। राज्य में उनका नेटवर्क जबरदस्त है। कहा जाता है कि राजस्थान के हर गांव में कम से कम पांच व्यक्ति ऐसे होंगे जिन्हें गहलोत उनके नाम से जानते हैं। उनकी राज्य के माली समुदाय पर जबरदस्त पकड़ है। राजस्थान में माली समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं और यह एक शक्तिशाली ओबीसी समूह है। गहलोत का यह गुण उन्हें एक खतरनाक जिम्मेदारी के तौर पर भी पेश करते हैं। इस बात में रत्ती भर शक नहीं किया जा सकता है कि गहलोत अपनी स्लीपर सेल के जरिए पार्टी को कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए गहलोत वह मुश्किल बन गए हैं, जिसे न निगला जा सकता है और उगला जा सकता है। ashok gehlot
गहलोत कांग्रेस पार्टी के उस बरगद के पेड़ की तरह है जिसने पिछले दो दशकों में राजस्थान में किसी और कांग्रेसी नेता को पनपने व चमकने नहीं दिया। राजस्थान की राजनीति पर गहलोत का कड़ा नियंत्रण रहा है। इसी के चलते दो बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी मिला। गहलोत ने लोगों की नजर में ऐसी धारणा बनवा दी है कि राजस्थान में गहलोत का मतलब कांग्रेस है और कांग्रेस का मतलब गहलोत। अगर गहलोत इसी तरह शक्ति प्रदर्शन करते रहे तो यह तो पक्का है कि राहुल गांधी को उनके कद से डरकर फिर से राजस्थान में कांग्रेस के चेहरे के तौर पर पेश करना पड़ सकता है। सचिन पायलट को पटाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। ashok gehlot