राजस्थान की राजनीति में आजकल कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है जैसा की शिर्षक है। अकेला चना, हालांकि अकेला चना आधा अछूरा ही है लेकिन फिर भी इसके कई मायने है। साधारण तौर पर तो यह केवल एक लोकोक्ती है कि अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता लेकिन इस समय यह लोकोक्ती प्रदेश की वर्तमान माहौल पर सटीक काम कर रही है।
राजस्थान वर्तमान में अपनी मुखिया श्रीमती वसुंधरा राजे के साथ तरक्की की राहों में लगातार आगे बढ़ रहा है। लेकिन विपक्ष और विपक्ष में भी अकेला चना शायद आराम की नींद नही सो पा रहा है। अकेला चना( पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत) इसलिए क्योंकि कांग्रेस के पास और को तो है नही यही एक चना है जो बार बार भाड के गरम होने पर उछलता रहता है।
गहलोत साहब को शायद इन दिनों कोई दूसरे ही सपने आ रहे है। यह हालात तब है जब प्रदेश में 2019 में आम चुनाव होने है। नही होता कि खिसीयानी बिल्ली खंभा नोचे। हालात भी यही है। गहलोत जी के पास औऱ कोई चारा नही है । प्रदेश की पुरी कांग्रेस का सारा दोरोमदार गहलोत जी अकेले लेकर बैठे है। आस पास कोई नजर नही आता तो मुंह से दो चार शब्द निकलते है लेकिन दंगल में पहलवान को चाहें कितनी गालियां पडे, जीतना पहलवान को ही होता है।
आखिर सचिन पायलट जी, सीपी जोशी जी जैसे बडे नेता तो दिल्ली की फिराक में लगे हुए है तो राजस्थान भी तो भाई किसी न किसी को संभालना पड़ेगा ना। बस यही सोचकर ये अकेला चना भाजपा का भाड़ भोडने की भरपूर कोशिश कर रहा है। देखना यह होगा की चना भाड़ भोड़ेगा या खुद भूना जायेगा।