इस आग उगलती गर्मी में थोड़ा सूकून देते हैं राजस्थान के झौपड़े, इस सिस्टम के आगे एसी-कुलर भी फेल

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    राजस्थान का रेगिस्तान दुनिया से सबसे बेरहम निर्जनों में से एक है। जब आप रेगिस्तान में जाते है तो आपके मन में गर्म और तपा देने वाली धूप का दृश्य पहले सामने आता होगा। लेकिन वास्तविकता जरा भिन्न है। रेगिस्तान में रहने वाले राजस्थानियों ने इस गर्मी से बचने के लिए कुछ शानदार ठंड़े तरीके अपनाएं है जो आपके ऐसी कुलर से भी ज्यादा कारगर है। यहां भीषण गर्मी में भी लोग बड़े इत्मिनान से जीवन जीते हैं। यहां न तो पत्थरों से बने महलनुमा भवन होते हैं और न ही शहरों की तरह ऊंची ऊंची इमारतें, फिर फिर भी यहां घर इतने ठंडे होते हैं। इन रेगिस्तानियों के घरों को झौंपड़ा कहते है। आइये जरा विस्तार से जानते है राजस्थान के इन झौंपड़ो की ठंडी तासीर को।

    झोंपड़ों की जिंदगी होती है यूं खास

    भले ही रेगिस्तानी क्षेत्रों में भीषण गर्मी पड़ती हों लेकिन यहां की जिंदगी बड़ी ही खास होती है। बात यहां बने झौपड़ों की करें तो यही वो घर है जिनमे इंसान बड़े ही आराम से गर्मी के दिन काटता है। भीषण गर्मी में भी यहां लोग बड़े आराम से रहते है। सवाल है कि आखिर झोंपड़े इतने ठंडे क्यों रहते है, यहां की जिंदगी आराम दायक होती है। घास-पूस से बने ये झौंपड़े राजस्थानियों के जीवन का खास हिस्सा हैं। इन्हे इस तरह बनाया जाता है कि ये गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते है।

    इतने ठंडे क्यों होते है झोंपड़े

    Huts in Rajasthan

    यहां रहने वाले लोग का अनुभव बोलता है कि हल्की पत्थर की पट्टियों के ऊपर सबसे पहले लकड़ी का जाल, फिर आक पेड़ की शाखाओं का जल और उसके ऊपर बाजरे के तनों से या फिर जंगली घास से बनाई जाने वाली छत ही इस ठडक की वजह होती है। पहले तो गर्मी को उपरी सतह पर ही रोक दिया जाता है और फिर आक की शाखाओं के बीच बहने वाली हवाओं का जोर ठंडा हो जाता है। उसके बाद छनकर आने वाली हवाएं लकड़ी से टकराकर एक दम ठंडी हो जाती है। इसके अलावा पट्टियों में छोटे छेद से बची गर्म हवा भी पार हो जाती है। ऐसे में 50 से पार तापमान भी यहां ठंडक का अहसास होता है। सांखी की माने तो इतने बरस उनके जीवन के ऐसे दिन रहे जब बरसात के दिनों में तो सर्दी लगाने लग जाती थी।

    इस सिस्टम के आगे एसी-कुलर भी फेल

    इन दिनों शहर का तापमान औसत से 5 डिग्री ऊपर चला गया है और इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अब लू चलने की संभावना बन रही हैं। पारा 44 डिग्री दर्ज किया गया जो पिछले 12 बरसों में अप्रैल का सर्वाधिक तापमान का रिकोर्ड बनता जा रहा है। आपको बता दें कि 50 डिग्री तापमान के बाद ऐसी, कूलर सब काम करना बंद कर देते हैं। लेकिन झौंपड़ों में इस तापमान का असर नहीं होता है।

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