आखिर क्यों बन गया राजस्थान एक रेगिस्तान? भूवैज्ञानिकों की एक खोज ने निकला इसका समाधान…

    0
    2630
    shifting sand dune

    क्या आप जानते हैं कि वीरों का राज्य राजस्थान हमेशा से एक मरुस्थल नहीं था? मीलों तक फैला हुआ बंजर थार रेगिस्तान कभी वृक्षों से सुसज्जित, पक्षियों की चहचहाट से खिला एक हरा भरा प्रदेश था जहां लंबी-लंबी नदियां बहा करती थीं। हाल ही में भूवैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन के बाद इस तथ्य की पुष्टि की है।

    रेत के टीलों ने रोका नदियों का बहाव

    एक अध्ययन में ये पता चला कि जल से लबालब भरी नदियों ने  समय के साथ अपनी पहचान खो दी। हवा के साथ निरंतर  दिशा बदलते रेत के टीलों ने नदियों का बहाव बाधित कर दिया। लंबे समय के बाद वैज्ञानिकों ने जैसलमेर जिले के भानियाना इलाके में स्थित 100-किलोमीटर लंबा एक पेलिओ चैनल (जल अवशेष) ढूंढ निकला जिसकी जड़ें बाड़मेर जिले के पछपाड़्रा इलाके में लूनी नदी से जुड़ी हैं। बदलते वातावरण और गर्म तापमान के साथ ये जल स्रोत रेत से लगभग भर गया है और विलुप्ति के कगार पर है।

    luni river

    विविध मापदंडों के अध्ययन के बाद भूगोलशास्त्रियों ने ये पता लगाया है कि थार रेगिस्तान में ऐसे कई पेलिओ चैनल अभी भी मौजूद हैं। ये क्षत-विक्षत चैनल लूनी नदी की एक सहायक नदी से बना है जिसकी उत्पत्ति जैसलमेर के भानियाना गांव में हुई थी। भानियाना से ये नदी बारमेर में दंडल, फूलसर, फलोसुंद, हीर की धानी, स्वारा, जीरा और जाम जैसे गांवों से बहती हुई रेगिस्तान में जा के विलुप्त हो कर एक गुमनाम क्षेत्र में विलुप्त हो गयी। जहां-जहां नदी से निकली इन सहायक नदियों ने दम तोड़ा, वहीं पर वैज्ञानिकों ने इन जल स्रोतों की खोज की है।

    बारिश के मौसम में इन चैनल्स के आस-पास पानी ठहरने से अस्थायी तालाब बन जाते हैं जिनका जल रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अध्ययन डॉ एसआर जाखड़, एसोसिएट प्रोफेसर, भूविज्ञान विभाग, जेएनवीयू द्वारा किया गया था। प्रोफेसर साहब की मानें तो जल के अभाव से जूझते आस-पास के स्थानीय निवासियों का इन जल स्रोतों से कल्याण हो सकता है।

    मानव सभ्यताओं ने किया जल का दुरूपयोग

    भूतकाल में लूणी नदी के किनारे पर मानव सभ्यताएं बस गयीं। जल के बढ़ते उपयोग के कारण समय के साथ ये नदी छोटी होती चली गयी। किनारों पर बसे लोगों ने नदी की जमीन पर खेत खलियान बना लिए जिनके कारण पानी की कमी हो गयी। इसका उदाहरण हमें बाड़मेर में कई बार देखने को मिला। 2006 और 2010 में भारी बारिश के कारण बाड़मेर के कावासा और माल्वा जैसे कई गांवों में बाढ़ आ गयी थी। ये स्थिति इस कारणवश उत्पन्न हुई क्योंकि ये गांव नदी के अवशेषों पर बसे हुए थे।

    Rajasthan as desert

    अभी भी देर नहीं हुई है, रेगिस्तान के बदल सकते हैं हालात

    बारिश के दिनों में कई बार भयंकर बाढ़ जैसी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं। डॉ. जाखड़ के अनुसार भविष्य में बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं से इन गांवों को बचाने के लिए राज्य सरकार को नदी के आसपास के क्षेत्रों का अध्यन करने की ज़रूरत है। रिमोट सेंसिंग और जीपीएस का उपयोग करके हम आपदा प्रवण क्षेत्रों को ढूंढ सकते हैं। अध्यन के बाद इन क्षेत्रों की आबादी को सुरक्षित जगह पर स्थानांतरित किया जा सकता है। लिंक नदी के किनारे पर बाढ़ के खतरों के संभावित कारणों का पता लगाने हेतु ये अध्यन किया गया था। इस रिसर्च के आधार पर भविष्य में भूगोलशास्त्र का पाठ्यक्रम तय किया जाएगा। इस के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को आपदा प्रबंधन सिखाया जाएगा।

    ponds created during monsoons

    प्रोफेसर जाखड़ के अनुसार इन नदियों को यदि जोड़ दिया जाए तो उनसे एक कृत्रिम जल स्त्रोत बनाया जा सकता है। इस जल का प्रयोग वृक्षारोपण, सिंचाई, मछली उत्पादन, पशुपालन,औद्योगिक  एवं घरेलू कामों में किया जा सकता है। यदि हम ऐसा करने में सफल हुए तो रेगिस्तान की तपती धरती में भी हम जल का लाभ उठा सकते हैं। इससे सूखे की स्थिति से निपटने में सहायता मिल सकती है।

    इसके अतिरिक्त हम इंटरलिंकिंग के माध्यम से भी जल अभाव को दूर कर सकते हैं। नदी इंटरलिंकिंग परियोजना के तहत राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने कई नदियों को एकसाथ जोड़ने का सुझाव दिया था। जल लिफ्ट परियोजना के तहत एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक नदी का जल पहुंचाने में आसानी होगी और इससे सभी को लाभ प्राप्त हो सकेगा। यह पश्चिम और दक्षिण भारत में पानी की कमी को दूर करने हेतु 30 प्रमुख नदियों को जोड़ने की योजना पर अभी कार्य किया जा रहा है। अगर ऐसा कुछ हम राजस्थान में करते हैं तो नदियों और तालाबों के माध्यम से हम राज्य को फिर से हरा-भरा करने में सफल हो जाएंगे।

    RESPONSES

    Please enter your comment!
    Please enter your name here