
जयपुर। राजस्थान में नाथी का बाड़ा एक बार फिर चर्चाओं में हैं। बुधवार को गहलोत सरकार ने अपने बजट में कई ऐसी घोषणाएं की थी, जिसे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने लोक लुभावनी बताया था। शुक्रवार को बजट पर चर्चा के दौरान भाजपा के विधायक अशोक लाहौटी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आज राजस्थान का बच्चा-बच्चा जानता है कि यह बजट सिर्फ नाथी का बाड़ा है। तो आइए जानते हैं, पिछले डेढ़ वर्ष से राजस्थान की सियासत में सबसे ज्यादा प्रयोग किए जा रहे इस शब्द की क्या है सच्चाई।
दरअसल हुआ यूं कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गाेविंद सिंह डाेटासरा ने बीते वर्ष अपने घर पहुंचे शिक्षकों काे फटकार लगाते हुए कहा था कि मेरे घर काे नाथी का बाड़ा समझ रखा है क्या ?… शिक्षक वर्ग में इसकाे लेकर खासी नाराजगी थी। इसका एक वीडियाे साेशल मीडिया पर जबरदस्त रूप से वायरल भई हुआ। इसके बाद नाथी बाई का बाड़ा शब्द खूब चर्चा में रहा।
भांगेसर गांव की थी नाथी बाई
यह कहावत उस नाथी बाई से जुड़ी हुई है, जाे दानशीलता की साक्षात देवी थी। जरूरतमंदों की मदद करते वक्त उनके घर में काेई अनाज ताेलने के लिए न तराजू था। ना ही वे नकद राशि की मदद करते वक्त नाेटाें का गिनती थी। उनकी इसी दानशीलता के कारण उनके घर काे नाथी का बाड़ा कहा जाता था। प्रदेश में इस मुद्दे काे लेकर छिड़ी बहस के बाद भास्कर ने नाथी मां के इतिहास काे खंगाला। नाथीबाई के जन्म का इतिहास 150-200 पुराना है। उनका पैतृक गांव राेहट तहसील का भांगेसर है। उनका परिवार आज भी गांव में बसर कर रहा है।
बेटी की शादी में बुलाए थे 60 गांव
रियासतकाल में बना नाथी का बाड़ा यानी मकान के जीर्ण-शीर्ण हाेने के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने अब नए स्वरूप में निखार दिया है। मकान के प्रवेश द्वार पर ही पत्थर पर खुदाई कर वहां नाथी भवन लिखा हुआ है। जिस गली में मकान है। गली के शुरू होते ही नाथी मां द्वारा पुत्री की शादी के दौरान व्रत पालन के दाैरान निर्मित कराया गया चबूतरा आज भी है। उसका हाल ही में परिजन द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया है। चबूतरे पर शिलालेख भी लिखा था, किन्तु पुराना पत्थर खुर्द-बुर्द हो गया। इस चबूतरे का नाम व्रत पालन (उजावणा) चबूतरा रखा है। किवंदती है कि नाथीबाई ने पुत्री के विवाह के दौरान 60 खेड़ा (गांव) आमंत्रित किए थे, जिसमें स्नेह भोज में घी की नालियां बही थी। घी बहता हुआ गांव के प्रवेश द्वार (फला) तक पहुंचा था।
खुले मन से करती थी लोगों की मदद
नाथी मां अपने यहां पर पहुंचने वाले हर जरूरतमंद की मदद दरियादिली और खुले हाथाें से मदद करती थीं। अनाज भी किसी काे ताैलकर नहीं दिया और नकद राशि की मदद भी की ताे उस जमाने में प्रचलित धनराशि काे मुट्ठी में भरकर देती थी। लाैटाने पर भी नहीं गिनती। इसी को लेकर कहावत बनी- यह नाथी का बाड़ा है। नाथी मां के परिजनों में पड़पौत्र 69 वर्ष के नरसिंहराम व उनकी पत्नी गंगा ने नाथी भवन के एक बरामदे की बनी दीवार की जगह बताते हुए कहा कि यहां नाथी मां की बैठक थी।
दरियादिली बनी नाथी की पहचान
नाथी मां का जीवन जरूरतमंदों की मदद व समाजसेवा से जुड़ा हुआ है। घर से नाथी मां पैसा या अनाज ले जाने व वापस जमा कराने पर ना तो हाथ लगाती थी ना ही गिनती का ध्यान रखती थी। सब कुछ जरूरतमंद की ईमानदारी पर ही हिसाब टिका था। इसी कारण प्रचलित हुई कहावत यह क्या नाथी का बाड़ा है या इसे क्या नाथी का बाड़ा समझ रखा है। यह नाथी मां के जीवन चरित्र काे चरितार्थ करती है। नाथी मां के निधन को 100 साल से अधिक समय हो गया है। समाधि स्थल तालाब परिसर में मौजूद है।
भाजपा नेता कर रहे नाथी का अपमान
सरकार और विपक्ष में कई मुद्दों को लेकर विरोधाभास देखा जाता है। ऐसे में कभी सतीश पूनिया तो कभी राजेन्द्र राठौड़, अक्सर कांग्रेस सरकार की कार्यप्रणाली को नाथी का बाड़ा कहकर चिढ़ाने का प्रयास करते हैं, जो कि उचित नहीं है। क्योंकि नाथी मां एक समाजसेविका थी, जिसको बार-बार हंसी का पात्र बनाकर भाजपा के नेता उनका अपमान कर रहे हैं।