Rajasthan University: घोटालों का बना विश्वविद्यालय, कभी राजनीति तो कभी घोटालों से लबरेज है हमारा विश्वविद्यालय

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    राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्रों को पढ़ने के सिवा सब कुछ मिलता है। विश्वविद्यालय की साख दांव पर लगी है और विश्वविद्यालय के अधिकारी कर्मचारी इसकी इज्जत को निलाम करने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे है। राजस्थान विश्वविद्यालय अब राजनीति और घोटालों करने वालों की कर्म स्थली बनता जा रहा है। छात्रसंघ चुनाव में विश्वविद्यालय के हालात देखने लायक होते है तो हर रोज होने वाले घोटालों से युनिवर्सिटी के अधिकारियों कर्मचारियों की पोबारह हो गई है।

    घोटालो का विश्वविद्यालय कहें तो अतिश्योक्ति नही होगी

    राजस्थान विश्वविद्यालय को अब घोटालों का विश्वविद्यालय कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। पिछले कुछ सालों में विश्वविद्यालय ने अपनी साख घोटालों के विश्वविद्यालय के रुप में ही बनाई है। घोटालों के इस विश्वविद्यालय से अब डिग्रियों की जगह हर रोज नए नए घोटाले उजागर हो रहे है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो विश्वविद्यालय में नित नए घोटाले उजागर कर रही है तो स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने भी पिछले माह पेपर लीकर प्रकरण का भांडा फोड़ कर एक दर्जन से अदिर प्रोफेसर व्याख्याताओं को जेल का रास्ता दिखाया था।

    लाइब्रेरी की पुस्तकें खरीबदने के नाम पर हुआ 60 लाख का घोटाला

    एसीबी की जांच में ताजा मामला विश्वविद्यालय के लॉ डिपार्टमेंट में लाइब्रेरी के लिए पुस्तक खरीदने के नाम पर करीब साठ लाख रुपए का घोटाला सामने आया है। इस मामले में एसीबी ने एफआईआई दर्ज करने की तैयारी कर ली है।

    दो साल में किए 60 लाख हजम

    एसीबी के सूत्रों ने बताया कि विश्वविद्यालय के लॉ डिपार्टमेंट में साल 2011 से 2013 के बीच विभागाध्यक्ष से लेकर लाइब्रेरी के अध्यक्ष औऱ कर्मचारियों ने पुस्तक खरीदने के नाम पर जमकर फर्जीवाड़ा किया है। जिसके आधार पर कमीशन और रिश्वत के रूप में प्रोफेसर, शिक्षक और पुस्तकालय अध्यक्ष तथा कर्मचारियों ने करीब 60 लाख रुपए बटोर लिए।

    बिना टेंडर खरीदी किताबें

    एसीबी की जांच में सामने आया कि तीन साल के दौरान संबंधित विभागाध्यक्ष औऱ लाइब्रेरी के अधिकारी-कर्मचारियों ने आपसी मिलीभगत से बिना टेंडर के ही लाखों रुपए की पुस्तके खरीद ली।

    ये है नियम जिन्हे ताक पर रख दिया

    • नियमों के मुताबिक छोत्रों की डिमांड पर संबंधित विभागाध्यक्ष लाइब्रेरी कमेटी के सामने पुस्तक खरीदने की सिफारिश करता हैं।
    • इसके बाद पुस्तकालय अध्यक्ष इस मामले में बाकायदा टेंडर जारी करता है।
    • साल 2011 से 2013 के बीच लॉ डिपार्टमेंट ने पुस्तकों के मामले में छाभों की बाजिब मांग को दरकिनार कर बिना टेंडर के अपनी जानकार फर्मों से लाखों रुपए की पुस्तकें खरीब कर करीब 60 लाख रुपए बतौर कमीशन ले लिए।

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