राजस्थान के प्रतापगढ़ ज़िलें के कच्ची बस्ती क्षेत्र में इस शुक्रवार को हुई कथित मज़दूर नेता ज़फर ख़ान की मृत्यु के कारणों पर से अब पर्दा उठ गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार ज़फर खान की मौत प्राकृतिक ह्रदय आघात के कारण हुई है। ज़फर ख़ान के साथ किसी तरह की मारपीट का कोई सबूत नहीं मिला है। पुलिस की प्रारंभिक जांच में भी मृतक के शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं मिले थे। जबकि पिछले दो दिनों से विपक्षी दल और चुनिंदा मीडिया समूह इस मामले में बेवज़ह ही सरकार की कार्यनीति को आरोपी बताकर प्रचारित कर रहे थे। अब पुलिस जांच और पोस्टमार्टम की मेडिकल रिपोर्ट के बाद यह सामने आ गया है कि मज़दूर की मौत को विपक्ष ने सरकार के ख़िलाफ़ मुद्दा बनाना चाहा था।
मीडिया और कुछ राजनेताओं ने बदले की भावना से निभाया अपना किरदार:
प्रतापगढ़ के आदिवासी इलाके में रहने वाले ज़फर खान की मौत होने पर अनेकों राजनेताओं और कुछ अतिसमझदारों ने इसे केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना चाहा। 44 वर्षीय इस व्यक्ति की मौत का दोष पिछले कुछ दिनों से स्वच्छ भारत मिशन और नगर परिषद की टीम पर मढ़ दिया गया था। कहा गया कि मृतक के साथ मार-पीट हुई, जिसके कारण उसकी जान गई। मीडिया चैनलों ने भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए सच को ताक पर रख दिया और ज़ायकेदार खबर बनाना अपना फ़र्ज़ समझा। परिणाम यह हुआ कि लोग झूठ को सच मान बैठे। अपने दर्शकों को किसी मुद्दे का हर पहलू दिखाकर सोचने-समझने की ताकत देने वाले मीडिया समूहों ने यहाँ पक्षपूर्ण व्यवहार किया। भारतीय मीडिया और अहम् से भरें बेवक़ूफ़ समझदारों के इस रवैये ने लोकतंत्र में झूठ को अपनी बैसाखी बनाने वाले नेतागणों की संख्या को बढ़ाया है।
अफवाह फैलाने वालों के मुँह पर लगा ताला:
प्रतापगढ़ निवासी ज़फर ख़ान की मौत पर चली अफवाहों के दौर में अनेकों नौसिखियां लोगों ने भी सरकार के सुशासन पर ऊँगली उठाई थी। लेकिन अब घटना की सच्चाई सामने आते ही पिछले दो दिनों से बड़बड़ाने वाले स्वघोषित बुद्धिजीवी और राजनेताओं का मुँह बंद हो गया है। क़ानून व प्रशासन की कार्यवाही और जांच होने से पहले ही इन लोगों ने अपने मन से ही दोषी तैयार कर लिए थे। बिना मुद्दे की जांच-परख के सिर्फ सोशल मीडिया पर चल रहे अफवाहों और ट्रेंड के आधार पर किसी के लिए दायरा बना देना इन बड़े लोगों की औछी मानसिकता को दर्शाता है।
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