रंगों के उत्सव होली के पांचवें दिन। यानी चैत्र मास, कृष्ण की पंचमी को Rang Panchami (रंगपंचमी) का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार यह 25 मार्च यानि आज मनाया जा रहा है। श्री रंग पंचमी और मेरठ में नवचंडी मेला भी आज ही होता है। (रंगपंचमी) में होली की तरह ही रंग खेले जाते हैं। राधा कृष्ण जी को भी अबीर-गुलाल लगाया जाता है। कई जगह एक-दूसरे पर रंग व गुलाल डालकर (रंगपंचमी) मनायी जाती है। हम यह भी कह सकते हैं…! चैत्र मास की कृष्णपक्ष पंचमी देवी-देवताओं को समर्पित मानी जाती है। दरअसल मान्यता है कि इस दिन विभिन्न रंगों की गुलाल से वातावरण शुद्ध होता है। जिससे वायुमंडल में व्याप्त तमोगुण और रजोगुण का नास हो जाता है।
मध्यप्रदेश में (रंगपंचमी) Rang Panchami खेलने की बहुत पुरानी परंपरा है। इस दिन लोग यहां जुलूस निकालते हैं। तथा श्रीखंड-पूड़ी का प्रसाद भी लेते हैं। इसके ठीक विपरीत कानपुर में होता है। होलीका दहन, धुलेंडी के बाद से ही कानपुर में रंग खेलने का जो सिलसिला शुरू होता है। वह क़रीब एक सप्ताह तक चलता है। रंग पंचमी के दिन महाराष्ट्र में मछुआरों की बस्ती में नाच-गाना होता है। यह मौसम शादी तय करने के लिए भी ठीक माना जाता है। सारे मछुआरे इस दिन एक-दूसरे के घर मिलने जाते हैं, और मौज़-मस्ती करते हैं।
पांचवें दिन Rang Panchami (रंगपंचमी) तो आठवें दिन शीतलाष्टमी मनाई जाती है
जिस प्रकार होली के पांच दिन बाद (रंगपंचमी) Rang Panchami होती है। उसी प्रकार आठ दिन बाद शीतलाष्टमी मनायी जाती है। यह पर्व हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शुरू होता है। हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी का बहुत महत्व है। इसके अगले दिन अष्टमी को बासोड़ा या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है। तथा मनोकामना मांगी जाती है। कहा जाता है, इस दिन मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है। जिसके लिए एक दिन पहले यानि सप्तमी को ही पकवान बना कर रख लिए जाते हैं। इनमें हलवा-पूड़ी, दही-बड़ा, पकौड़ी, पुए, रबड़ी आदि बनाये जाते हैं।
अगली सुबह महिलायें इनका भोग माता शीतला को लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन शीतला माता समेत घर के सदस्य भी बासी भोजन खाते हैं। इसीलिए इसे बासौड़ा भी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन के बाद बासी भोजन खाना स्वास्थ्य के लिए सही नहीं होता है। यह सर्दी ऋतू ख़त्म होने का संकेत होता है। और इसे शीत ऋतू का अंतिम दिन भी माना जाता है। इस दिन पूजा करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं। और उनके आर्शीवाद से दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गंधयुक्त फोड़े, शीतला की फुंसियां, शीतला जनित दोष और नेत्रों सम्बंधित समस्त रोग दूर हो जाते हैं। (रंगपंचमी) Rang Panchami तथा शीतलाष्टमी दोनों ही होली से जुड़े त्यौहार हैं। जो होली के साथ, होली के बाद आते हैं।
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