आज दीन दयाल शोध संस्थान द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष के अंतर्गत अजमेर में व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड स्थित राजीव गांधी सभागृह में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में एक डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया गया यह डॉक्यूमेंट्री लगभग 30 मिनट की थी इसमें पंडित दीनदयाल जी के जीवन यात्रा का बहुत ही तथ्यात्मक तरीके से वर्णन किया गया। दीनदयाल जी का भारतीय राजनीति में क्या योगदान रहा इसको विस्तार से दर्शाया गया।
पंडित दीनदयाल जी की सादगी का चित्रण भी बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया। व्याख्यान कार्यक्रम के विषय वर्तमान संदर्भ में भू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर प्रस्तावना रखते हुए पंडित दीनदयाल शोध संस्थान के अध्यक्ष पूर्व सांसद एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेश चंद शर्मा ने कहा की राष्ट्र क्या है देश और दुनिया में राष्ट्र शब्द की चर्चा होती है जिसे पर्यायवाची के रूप में बोला जाता है। वर्तमान में राष्ट्र की कोई परिभाषा नहीं है युवाओं जैसी संस्था को अधिकार है कि किसी भी संप्रभु राज्य को मान्यता दे सकता है और वह राष्ट्र कहलाने लगता है।
वर्तमान में यू.एन.ओ. के कारण ही राष्ट्रों की संख्या घटती और बढ़ती रहती है। राष्ट्र बनाएं बिगाड़े और मिटाए जाते हैं अराजकता आज का यक्ष प्रश्न है जिसे दूर करने में स्वयं सेवक संघ हस्तक्षेप करता है और करता रहेगा। सामान्यतः इसेएक राजनीतिक विज्ञान का विषय माना जाता है जबकि वेदों में तो राष्ट्र शब्द का प्रयोग एक बार ही नहीं अनेकों बार हुआ है यहां तक कि आज यूरोप में द्रीराष्ट्रवाद खड़ा हो गया है जबकि भूराष्ट्रवाद के आने के बाद ही मानवता सुखी होगी।
इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री सुरेश भैयाजी जोशी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ने कहा भारतीय राष्ट्रवाद के साथ हिंदू शब्द से ही जुड़ा है। हिंदू शब्द को संकीर्ण सांप्रदायिकता के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने स्मरण कराया कि जब बाबरी ढांचे को ढहाने के लिए हजारों हजारों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे तो रास्ते में उन्होंने किसी भी धर्म स्थल पर पत्थर नहीं फेंका, ना किसी को नुकसान पहुंचाया था।
आर एस एस राजनीति से बहुत दूर है यह संस्था राष्ट्र व् राष्ट्रवाद की बात करने वाली संस्था है तो उसे राजनीति से कैसे जोड़कर देखा जा सकता है। राजनीति से हटकर और उठ कर ही बात करनी होगी, राष्ट्र की परिकल्पना इसी से होती रहेगी। राष्ट्र तो बनते हैं मिटते हैं और यह चलता रहेगा वृहद भारत पूरा एक संस्कृति से जुड़ा हुआ है यह एक भ्रम के कारण अलग हुआ है उसे एक करने की जरूरत है। वसुदेव कुटुंबकम – पूरा विश्व एक है – की संकल्पना पूरे विश्व में केवल भारतीय ही करते हैं और करते रहेंगे। भैया जी जोशी ने बताया कि अगर भारत को समझना है तो संस्कृत को पढ़ना होगा, वह समझना होगा। बिना पढ़े और समझे भारत को समझा जाना संभव नहीं है जबकि हमारे यहां तो क्षेत्रीय पार्टियां अपने क्षेत्र विशेष वह अपने उत्थान मात्र के लिए अपने राष्ट्रीय हित का बलिदान करने के लिए भी तैयार रहती हैं।
(Press Release)