राजस्थान सरकार अब जल्दी ही प्रदेश में जिलों की संख्या बढ़ा सकती हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने आगामी बजट राजस्थान में इसकी घोषणा करक सकती हैं। अगर ऐसा होता हैं तो राज्य में 33 जिलों से बढ़कर 37 हो जाएगी। अपने तीन साल के जश्न में सरकार राज्य के प्रशासनिक ढांचे में कुछ इस तरह बदलाव की तैयारी में है। मुख्यमंत्री राजे पूर्व की गहलोत सरकार की तरह चुनावी वर्ष में सरकार घोषणाओं-योजनाओं की झड़ी नहीं लगाना चाहती।
गहलोत सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी
सरकार के पास फीडबैक है कि गहलोत सरकार ने अंतिम साल में जिस तरह से घोषणाओं की झड़ी लगाई थी, उससे जनता के सामने गलत मैसेज गया और चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। ऐसे में अब वसुंधरा सरकार इस बार के बजट में कई ऐसी घोषणाएं कर सकती है, जो आमतौर पर सरकारें अपने कार्यकाल के अंतिम बजट के लिए बचाकर रखती हैं। यही कारण है कि प्रदेश के 49 बड़े कस्बों से जो जिलों की मांग की जा रही है, उनमें से दो से चार को सरकार खुश कर सकती है। इनमें कई कस्बे ऐसे भी हैं जो इन चार जिलों में मर्ज हो सकते हैं।
ये जिले सबसे आगे
राज्य के 24 जिलों में 49 नए जिले बनाने की मांग हैं, लेकिन ब्यावर, बालोतरा, डीडवाना, शाहपुरा, अनूपगढ़, फलौदी दौड़ में सबसे आगे हैं। नए जिले बनाने की मांग पिछले 10-12 साल से उठ रही है। इसे देखते हुए ही पूर्व आईएएस परमेश चंद की अध्यक्षता में राजस्थान उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपेगी। नए जिले बनाने पर भाजपा को लाभ तो हो सकता, लेकिन सरकार पर आर्थिक भार बढ़ जाएगा। वैसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सभी तरह के लाभ और हानि को देखते हुए ही कोई घोषणा करेगी। इससे पहले वसुंधरा राजे सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान प्रतापगढ़ जिला बनाया गया था। राज्य में अभी 33 जिले हैं।
नए जिलों के लिए ये मापदंड
नए जिले बनाने के लिए 15 तरह के मापदंड तय किए गए थे। इनमें जनसंख्या, विकास की जरूरत, विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता, आदिवासी क्षेत्र, रेगिस्तानी क्षेत्र, पूरी तरह से अविकसित, जिला मुख्यालय से दूरी, सीमापार से आतंकवाद, कानून व्यवस्था, अपराध, तस्करी प्रभावित क्षेत्र, सांप्रदायिकता आदि प्रमुख है। जिले बनाने की मांग वाले अधिकांश प्रस्ताव इन मापदंडों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे आएगा आर्थिक भार
नए जिलों की घोषणा तो आसान है, लेकिन इनके लिए खर्च की राशि सरकार के लिए भारी पड़ सकती है। एक जिला बनाने पर अगले पांच वर्ष के दौरान 800 से 900 करोड़ रुपए तक का आर्थिक भार आता है। इसमें संस्थापन और भवन आदि शामिल है। प्रशासन में रिकरिंग खर्च 150 करोड़ रुपए और पुलिस लाइन के लिए 200 करोड़ रुपए की प्राथमिक जरूरत होगी।