विषम परिस्थितियों में हमारा किसान टूटता है, गिरता है। लेकिन काल को चुनौती दे फिर उठ खड़ा होता है, आगे बढ़ता है।

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    कृषिप्रधान देश भारत में आज देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार की रीढ़ यानि किसान वर्ग की स्थिति चिंताजनक हो गई है। कारण है अन्नदाता पर बढ़ता क़र्ज़। फसल की कीमत बाज़ार में चाहे कम हो या ज़्यादा, किसान के हाथ कुछ नहीं लगता। किसानों की कमज़ोर आर्थिक हालत, लगातार बढ़ता कर्ज, और उससे भी तेज़ी से बढ़ती किसान आत्महत्याएं आज पूरे देश के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का प्रमुख मसला बन गया है। देश में सबसे ज़्यादा परेशानी और समस्याओं से ग्रस्त महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसानों को बताया जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि इन दोनों ही राज्यों से ज्यादा तकलीफें और कर्ज का भार देश की मरुभूमि और शुष्कभूमि कहलाने वाले राजस्थान के किसान झेल रहे हैं। बावजूद इन मुश्किलों और विषम परिस्थितियों के राजस्थान का अन्नदाता टूटता है, गिरता है। लेकिन हारता नहीं। वह उठ खड़ा होता है। अगले मौसम में फिर अपने पौरुष के बल पर दुर्भाग्य को पराजित करने का साहस लिए आगे बढ़ता है। यहीं वजह है कि देश में राजस्थान के किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की तुलना में काफी कम है। देश में हर साल जहाँ मध्य प्रदेश के 12% और महाराष्ट्र के 37 प्रतिशत से ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे है, वहीँ राजस्थान के किसानों ने इन आंकड़ों के रिवाज़ से बहुत हद तक दूरी बनाई रखी है।

    खेती के लिए मुश्किल हालातों का मुक़ाबला करने के अनुकूल हो गया है राज्य का किसान:

    राजस्थान के किसानों ने अकाल और सूखे की इतनी मार झेली है कि यहां का किसान इन मुश्किल हालातों से लड़ना सीख गया है। मरुस्थलीकरण और जलते मौसम को मात देकर भी राज्य के किसान ने अपनी फसल उगाई है। खेती के लिए विषम स्थितियों के बावजूद राजस्थान के किसान महाराष्ट्र के किसानों से ज्यादा दिलफेंक और खर्चीले है। राजस्थान में बड़ी कृषि जोत और मजबूत डेयरी तंत्र ने भी किसानों को आर्थिक दृष्टि से मज़बूती दी है। अकाल और सूखे की चुनौतियों से अभ्यस्थ हो आज प्रदेश का किसान हर बाधा को पार पाने के अनुकूल हो गया है।

    सरकार का सहयोग मज़बूत बनाता है:

    अपने हौंसले और हिम्मत के बल पर मरुभूमि को हरियाली भूमि में बदलने वाले प्रदेश के किसान के लिए राज्य सरकार ने एक भरोसे की तरह काम किया है। किसान हित में नीति और योजनाएं बनाकर उन्हें अपनी कार्यप्रणाली में लागू करने का काम राजस्थान सरकार ने किया है। किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए ब्याजमुक्त ऋण का वितरण किया है। देश में सर्वाधिक 1.36 करोड़ कृषि मज़दूर राजस्थान में है। आज जहाँ महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में कृषि मजदूरी की दर क्रमशः 120 रूपए व 100 रूपए प्रतिदिन है, तो वहीँ राजस्थान में यह मज़दूरी दर 166 रूपए है। इसी के साथ केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ अपने किसानों को पूरी तरह दिलाने में भी राजस्थान सरकार निरंतर प्रयासरत है। राज्य की 43.85% कृषि भूमि केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना के अंदर सम्मिलित है। इसके अलावा राजस्थान में वैकल्पिक सिंचाई के साधनों पर सरकारी मदद भी मिलती है।

    देश के दूसरे राज्यों में जहाँ फसल की सुरक्षा और अच्छे उत्पादन की चाह में महंगे कीटनाशक का उपयोग करने से खेती की लागत बढ़ जाती है। ऐसे में किसान पर आर्थिक और मानसिक दबाव भी बढ़ जाता है। लेकिन राजस्थान में सरकार द्वारा किसानों को जैविक खेती की ओर प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे राजस्थान में ज़्यादातर किसान जैविक खाद पर ही निर्भर हैं।

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