जयपुर। राजस्थान में दशकों से चला आ रहा जल संकट किसी से छिपा नहीं है। प्रदेश में पानी की कमी को पूरा करने के वादे लेकर यहां आजादी के बाद कई सरकारें आईं और चली गई, लेकिन इस समस्या का स्थाई समाधान शायद उनके लिए दूर की कोड़ी ही साबित हुआ। हालांकि, सार्वजनिक स्तर पर इस दिशा में कई कार्य हुए, लेकिन लगातार गिरते भू-जल स्तर के कारण यहां वर्ष 1990 के बाद तो जल संकट ने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कुओं व बावड़ियों में पानी सूखने लगा तथा दूरस्थ तालाब व जल संचयन के साधन भी खाली होने लगे थे। इस दौरान केन्द्र की सरकारों ने भी राजस्थान में घटते भूजल स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए अनेकानेक प्रयास किए, लेकिन मरुधर के सुखे धोरों को पानी की समस्या से कोई निजात नहीं मिल सकी।
वसुन्धरा राजे ने दी MJSA की सौगात
राजस्थान में जल संकट का स्थाई समाधान नहीं मिलता देख, जहां हर कोई चिंतित रहने लगा। ऐसे में सुराज संकल्प के वादों के साथ वर्ष 2013 में आई वसुंधरा सरकार प्रदेशवासियों के लिए किसी बड़ी सौगात से कम नहीं थी। वसुंधरा राजे जब भरे मंचों से ये हूंकार भरती थी कि हमारी सरकार राजस्थान को जल की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाकर रहेगी, तो शायद किसी को विश्वास नहीं होता था। जनवरी, 2016 में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के प्रथम चरण की शुरुआत की तथा डूंगरपुर सहित सभी जिलों में तालाब, बांध व बावड़ियों का निर्माण कार्य गति पकड़ने लगा। इस अभियान का संचालन जमीनी स्तर पर हो तथा जनता के एक-एक पैसे का सदुपयोग बारिश की एक-एक बूंद बचाने के लिए हो, इसलिए मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने खुद क्षेत्र में जाकर कार्यों को मॉनिटर किया।
'राजस्थान में पानी नहीं है . . . '
इस कहावत से प्रदेश को छुटकारा दिलाने के लिए हमने #MJSA को गति देकर #Rajasthan के कोने-कोने में तालाब, बांध व बावड़ियों का निर्माण किया। परिणामस्वरूप पूरे राज्य में भू-जल स्तर उपर उठा व राजस्थान जल संरक्षण की मिसाल बना।डूंगरपुर, 2017 pic.twitter.com/3GYLoQsn8n
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) November 3, 2020
डूंगरपुर को बनाया जल संरक्षण में अव्वल
वसुन्धरा सरकार ने जल संचयन के लिए राजस्थान में करीब तीन लाख 85 हजार जल संरक्षण ढांचों का कार्य किया। इन कार्यों की सफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मात्र डूंगरपुर जिले में एक लाख 10 हजार से ज्यादा किसानों को मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का सीधा फायदा मिला। अभियान के मात्र दो ही वर्षों में राजस्थान का भूजल स्तर 7 से 8 इंच उपर उठा तथा बंद पड़े हैंडपंप व कुंओं में फिर से पानी की आवक शुरू हो गई। MJSA की सफलता अब धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी तथा राजस्थान के लोगों को भी यह विश्वास हो चुका था कि वसुंधरा राजे की सरकार यदि दोबारा आई तो अगले पांच वर्षों में प्रदेश जल की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनकर कृषि के क्षेत्र में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात राज्यों की बराबरी कर लेगा।
राजे सरकार के कार्यों का क्रेडिट लेने की होड़
राजस्थान में जैसे ही सत्ता परिवर्तन हुआ, वर्तमान कांग्रेस सरकार ने भाजपा सरकार के उन कार्यों की सूची तैयार की, जिनका प्रदेश के विकास में सकारात्मक प्रभाव दिखा। इनमें भामाशाह योजना, अन्नपूर्णा योजना व मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान जैसी दर्जनों ऐसी नीतियां थी, जिनका कांग्रेस सरकार ने श्रेय लेना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं देश में पहली बार बने जल शक्ति मंत्रालय की नजर भी वसुंधरा सरकार की MJSA के ईर्द-गिर्द ही घुमने लगी। केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को जब भी अपने मंत्रालय के कार्यों का बखान करने की आवश्यकता पड़ी, उन्होने सबसे पहले राजस्थान में बने जल संचयन केन्द्रों की ही तस्वीर मोदी सरकार के सामने पेश की। हालांकि, वसुंधरा राजे ने कभी अपने कामों को इतना बढ़-चढ़कर पेश नहीं किया, जितना गहलोत सरकार व केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने वसुंधरा सरकार की योजनाओं के नाम पर खुद का बखान किया।