जाट आरक्षण: राजस्थान सरकार ने खोली जाट आरक्षण की राह, रोटी,कपड़ा और मकान से बदले पिछड़ेपन के पैरामीटर

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    देश और प्रदेश विकास के चरम स्थान पर है ऐसे में आरक्षण जैसे मुद्दों पर आंदोलन करना या प्रदर्शन करना बेमानी सा लगता है लेकिन फिर भी समाज आर्थिक और सामाजिक हितों की रक्षा के लिए आरक्षण लेने की कोशिशों में जुटा रहता है। वक्त बदल रहा है और धीरे-धीरे व्यक्ति की मूलभूत सुविधाओं में भी बदलाव आ रहा है। सरकार का गरीबों को और गरीबी को आंकने का नजरियां बदल गया है तो पिछड़ेपन के पैरामीटर में भी बदलाव आया है। अब रोटी, कपड़ा और मकान जैसी अवधारणाएं खत्म होने लगी है क्योंकि इनकी जगह शिक्षा, रहन-सहन और सामाजिक स्तर ने ले ली है। हाल ही में राजस्थान में जाट आरक्षण के मुद्दे पर स्टेट ओबीसी कमिशन की रिपोर्ट में भी पिछड़ेपन को इन्ही बदलावों के साथ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सौंपा गया है।

    शिक्षा, आवास और रहन-सहन से तय होता है पिछड़ापन

    राजस्थान राज्य के ओबीसी आयोग ने पिछड़ेपन को साबित करने वाली कैटेगरी जैसे शिक्षा, आवास और रहन-सहन के पैरामीटर के बिन्दुओं में बदलाव किए है। वर्तमान में आरक्षण की मांगों को देखते हुए यह पैरामीटर पिछड़ेपन का आंकलन करने में नाकाफी साबित होते है। गरीबी और पिछड़ेपन के ये पैरामीटर साल 1979 से 1990 तक कई आयोगों और एजेंसियों द्वारा तैयार किए गए थे।

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    धौलपुर, भरतपुर के जाटों के लिए खुली आरक्षण की राह

    राजस्थान सरकार ने भरतपुर और धौलपुर के जाट समुदाय को आरक्षण देने के लिए ओबीसी आयोग को रिपोर्ट बनाने के लिए कहा था। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी के अनुसार बात जब धौलपुर और भरतपुर जाट समुदाय को आरक्षण देने की आती है तो प्राथमिक प्रश्न ही यह होता है कि ये समृद्ध माने जाते है लेकिन जब वास्तविकता में देखा जाए तो पूर्वी राजस्थान के जाट बाहुल्य क्षेत्रों की हालत खराब है और इन्हे आरक्षण देने की सिफारिश की जानी चाहिए। इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए स्टेट ओबीसी कमीशन ने पिछड़ेपन और गरीबी के पैरामीटर में बदलाव कर एक नई रिपोर्ट मुख्यमंत्री राजे को सौंपी है जिससे जाटों को आरक्षण देने की नई राह खुलेगी।

    पिछले कुछ सालों में पिछड़ेपन का आंकने का पैरामीटर

    शिक्षा 
    पहले क्या : प्राथमिकशिक्षा
    अब: ग्रेजुएशन,टेक्निकल कोर्स आदि की गणना
    क्यों: 8वींतक कोई फेल नहीं होता। मीड डे मील, राइट टू एजुकेशन जैसी योजनाओं से बच्चे सरकारी स्कूल पहुंच रहे

    रहन-सहन
    पहले :साइकिल, दोपहिया, टेलीफोन, पंखा।
    अब: चारपहिया वाहन
    क्यों: दोपहिया वाहन, पंखा , टेलीफोन, टीवी आदि ये सब जगह उपलब्ध है।

    कच्चे मकान 
    पहले : कच्चे-पक्केमकानों को प्राथमिकता नहीं
    क्यों: इंदिराआवास योजना में घर बने है। गैस सिलेंडर आदि पहुंच चुका है।

    बालविवाह 
    पहले : पिछड़ेपनके मिलते थे नंबर
    अब: नहीं मिलेंगे
    क्यों: बालविवाह पर कानून सख्त है। पुलिस-प्रशासन कार्रवाइयां करते हैं।

    शिक्षा ड्रॉपआउट 
    पहले : 25%से अधिक पर पिछड़े की गणना में अंक मिलते थे
    अब: इसे प्राथमिकता नहीं , क्योंकि: आरटीईजैसी योजनाएं है।

    New Source: Bhaskar

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