आगामी राजस्थान चुनाव में कांग्रेस पूरजोर से जुट गई है। मिटिंग, रैली और संकल्प यात्रा के रुप में कार्यकर्ता जमकर पसीना बहा रहे हैं। इनकी मेहनत कितनी रंग लाएगी, यह तो बाद में पता चलेगा कि हाल ही में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने दावा किया है कि कांग्रेस दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। करना भी चाहिए और आखिर क्यूं न करें। उनके कार्यकर्ता इतनी दौड़ भाग जो कर रहे हैं। Congress Majority
लेकिन पता नहीं क्यों, कांग्रेस बार—बार कैसे भूल जाती है कि पिछली बार भी उन्होंने इतनी ही दौड़ भाग की थी लेकिन हुआ क्या। आगामी चुनावों में दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाने के हसीन सपने देखने वाले पायलट शायद यह भूल गए हैं कि 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 200 में से 21 सीटों पर ही सिमट गए थे। Congress Majority
उस समय तत्कालीन सरकार कांग्रेस की थी और चुनावी बागड़ोर थी अशोक गहलोत के हाथों में। प्रदेश के शहरों को मेट्रो सिटी के तौर पर पेश करने हुए गहलोत ने राजधानी जयपुर को मेट्रो ट्रेन का तोहफा देकर मेट्रो सिटी का उदाहरण दिया। लेकिन हुआ क्या…4 सालों में एक फेस तक पूरा न कर पाए और आनन-फानन में केवल लोकार्पण कर चलते बने। Congress Majority
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बाद में राजस्थान कांग्रेस की बागड़ोर आई नए नवेले सचिन पायलट के हाथों में। लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 में रिजल्ट आया विधानसभा चुनावों से भी उलट। कुल 25 सीटों में से कांग्रेस का खाता तक न खुल सका। केन्द्र की सरकार पलटी सो अलग। राज्य की सभी सीटें बीजेपी की झोली में चली गईं।
अब चुनाव सामने खड़ा है और पायलटजी अचानक से धरती फाड़कर बाहर निकल आए हैं। उनका कहना है, मैंने जिस दिन कार्यभार संभाला, उसी दिन से इलेक्शन मोड में हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि आखिरी साल छह महीने में काम करने का कोई मतलब नहीं होता। तब लोग समझते हैं कि चुनाव के लिए कर रहे हैं। प्रदेशाध्यक्ष के रूप में उनकी बीते साढ़े चार साल की कमाई कार्यकर्ताओं और आम जनता से जज्बाती और जमीनी रिश्ता है। इसी रिश्ते के दम पर कांग्रेस को भावी विजेता के रूप में देखा जा रहा है।’
उन्होंने यह भी कहा है कि मैं सौभाग्यशाली अध्यक्ष हूं कि लगभग पांच साल के मेरे कार्यकाल में जितना सहयोग, स्नेह और समर्थन मुझे पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं का मिला। वह इससे पहले शायद ही किसी पार्टी अध्यक्ष को मिला हो। राहुल गांधी कह ही रहे हैं कि हमें युवा लोगों को आगे लाना चाहिए।
अब जीत का दम तो निर्दलीय प्रत्याशी भी भरता है लेकिन पायलटजी का दम तो उनकी बातों में ही दिखता साफ नजर आ रहा है। समर्थकों का मिला प्यार और युवा लोगों को आगे लाने की बात कहकर उन्होंने बातों ही बातों में अशोक गहलोत को चुनावों में पीछे रखने की बात भी बता ही दी है।
अब पार्टी नेताओं में जहां फूट पड़ी हो और मुख्यमंत्री चेहरा तक निर्धारित नहीं हो पा रहा है। जहां चुनाव लड़ने के लिए खुद पार्टी सर्वेसर्वा को ब्रांड ऐंबेसडर बनकर सामने आना पड़ रहा हो। ऐसी टीम के उपकप्तान को मैदान में आने से पहले ही मैच जीतने और जीताने के हसीन सपने देखने से बाज़ आ जाना चाहिए, हमारा तो यही कहना होगा।