Ashok Gehlot politics
राजस्थान कांग्रेस राजनीति के बरगद के पेड़ यानि अशोक गहलोत इन दिनों अपने राजनीतिक करियर के नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। एक तरफ तो गहलोत आगामी विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब संजो रहे हैं, वहीं दूसरी तरह पार्टी उन्हें इन राजनीतिक मामलात से दूर रखने का प्रयास कर रही है। पिछली विधानसभा चुनावों में राजस्थान में हुई कांग्रेस की करारी शिख्स्त के बाद सचिन पायलट को प्रदेश का पार्टी प्रदेशाध्यक्ष बनाना भी अब गहलोत की गले की फांस बनता जा रहा है। इससे बुरा क्या होगा कि अब खुद की पार्टी उन्हें राजनीति से सन्यास लेने को प्रेरित कर रही है। ऐसे में लगने लगा है कि अशोक गहलोत के राजनीति के दिन गिनती के रह गए हैं। Ashok Gehlot politics
यह सही है कि गहलोत राजस्थान कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। दो बार मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठ चुके गहलोत पिछले दो दशक से पार्टी संगठन पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। गहलोत की सीधी पहुंच सोनिया गांधी और उनकी मंडली तक रही है। वहीं जमीनी स्तर पर भी गहलोत गहरी पैठ रखते हैं। राज्य में उनका नेटवर्क जबरदस्त है। कहा जाता है कि राजस्थान के हर गांव में कम से कम पांच व्यक्ति ऐसे होंगे जिन्हें गहलोत उनके नाम से जानते हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि अब शायद राजस्थान की जनता सहित खुद पार्टी को भी उनके ढल चुके कंधे से नेतृत्व करने की क्षमता पर शक हो चला है। इसी का एक पहलू यह भी है कि उन्हें कांग्रेस पार्टी में महासचिव का पद देकर उनका ध्यान राजस्थान की राजनीति से हटाने की कोशिश की जा रही है।
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पार्टी के अंदर के क्रियाकल्याप खुद इस बात का संकेत देते दिखाई दे रहे हैं। उन्हें राजस्थान की राजनीति में कितना शामिल किया जा रहा है, इस बात का अंदाजा तो इस बात से हो जाना चाहिए कि उपचुनावों में प्रचार के दौरान अशोक गहलोत को पीछे रखा गया। अपने प्रत्याशियों के समर्थन भाषणों में भी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट आगे रहे। अब उपचुनावों में पायलट के नेतृत्व में जीत को पचा पाना भी गहलोत के लिए मुश्किल हो रहा है। Ashok Gehlot politics
सीकर में गहलोत के दिए गए बयान से भी जाहिर होता है कि राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट खुद को भविष्य में राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर देख रहे हैं। ऐसे में गहलोत का सपना चूरचूर हो सकता है। गहलोत के शब्दों में कहा जाए तो ‘सचिन पायलट हवाई किले बना रहे हैं, जो कभी हकीकत नहीं बन सकते बल्कि चकनाचूर ही होते हैं।’ Ashok Gehlot politics
विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस को मिली हार के बाद पार्टी आलाकमान ने पहले से ही गहलोत और पायलट को एक—दूसरे से दूर रखने का प्रयास किया है। लेकिन अब विधानसभा चुनावों के पास आने के बाद फिर से दोनों के मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं। यह वक्त अशोक गहलोत राजनीतिक करियर के लिए आमूल परिवर्तन का काल साबित हो सकता है। लिहाजा रणनीतिक तौर पर गहलोत कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। अपनी महत्वाकांक्षा और जिद के चलते गहलोत को जल्द ही राहुल गांधी की तरफ से मुलाकात का बुलावा आ सकता है। यहां अगर गहलोत को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी जाए तो कोई अचंभा नहीं होना चाहिए। Ashok Gehlot politics