आनंदपाल का सियासी इस्तेमाल क्यों? आख़िर आनंदपाल की मौत के बाद ही क्यों जगें समाज के नेता?

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    राजस्थान समेत देश के पांच राज्यों की पुलिस और जनता का आरोपी आनंदपाल सिंह को मरे हुए आज दो हफ्ते से ज़्यादा समय बीत चुका है और इतना ही समय उसकी मृत देह पर राजनीति करने वालों को ज़िंदा हुए हुआ है। बलिदानियों की धरती कही जाने वाली राजस्थान में आज कुछ ऐसे लोग भी है जो स्वार्थ और लालच में डूबकर अपनी राजनीति और पहचान उबारने में लगे है। अपनी आन और बात के लिए जान न्योछावर कर देने वालों के लिए विख्यात राजस्थानियों में आज कुछ फ़र्ज़ी राजनेता ऐसे भी नज़र आ रहे है जो अपनी झूठी आन और बात ऊंची रखने के लिए पिछले 18 दिनों से एक अपराधी की लाश को ढाल बनाये बैठे है।

    आनंदपाल की पैरवी करने वाले अब ही क्यों जागें?

    6 से ज़्यादा लोगों को मौत के घाट उतार देने वाले आनंदपाल सिंह को मरने के बाद जिस कदर मसीहा का रूप बताया जा रहा है, वह समझ से परे है। 37 आपराधिक मुक़दमों में आरोपी आनंदपाल ने अपने जीवन में अनेकों अपहरण, फिरौती, लूट, डकैती जैसे घिनौने असामाजिक कारनामों को अंजाम दिया। आनंदपाल के अमानव बनने के उस दौर में ये समाज के नाम पर बहकाने वाले, नेता बन रहे लोग कहाँ थे? अचानक आनंदपाल की कहानी ख़त्म होने के बाद ही ये लोग क्यों जागें?

    सच्चा नेता वह होता है जो अपने समर्थकों और जनता को सही दिशा में लगाए। उन्हें सकारात्मकता की ओर प्रेरित करें। बुराई के रास्तें पर भटकें हुए युवाओं को सही रास्तें पर लाना सच्चे नेता का काम होता है। आनंदपाल की मौत पर उसकी लाश को लेकर तमाशा बनाने वाले ये लोग कतई राजपूत समाज और जाति के हित में नहीं सोंच सकते।

    आनंदपाल राजस्थान पर एक कलंक से ज़्यादा कुछ नहीं:

    राजस्थान आज इतिहास में अमर है तो धर्मपालक और वचनपालक बलिदानी राणा सांगा और प्रताप के लिए। राजस्थान की मिटटी पूजी जाती है, क्योंकि नीति पर चलकर जीवन का बलिदान देने वाली यहाँ पद्मिनी, कर्मावती, अमृता देवी जैसी औजस्वी वीरांगनाये हुई है। ऐसी धरती पर आनंदपाल जैसे दुर्दांतकारी का महिमामंडन करना शर्मनाक है। ऐसा आक्रांता जिसने महज़ अपने नाम और भय को बढ़ाने के लिए अनेकों महिलाओं को विधवा बनाया, कितने ही बच्चों को अनाथ किया, वह राजस्थान की पूजनीय माटी पर एक कलंक से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता।

    अपराधी और आतंकी की कोई जात नहीं होती:

    आज राजस्थान में  कुछ लोग जातिवाद और क्षेत्रवाद फैलाकर यह साबित करने में लगे है, कि आनंदपाल उनकी जाति का संरक्षक था। ये वहीँ लोग है, जो इस मिटटी पर बलिहार हुए प्रताप और चेतक की वीरता को भुला बैठे है। हल्दीघाटी में महाराणा ने अकबर के सेनापति मानसिंह के ख़िलाफ़ युद्ध किया था। अगर उस समय राणा जात और समाज की सोच मानसिंह के आगे हार मान लेते, तो आज मेवाड़ और राजपूताने की यह धरा इतिहास में अमर नहीं हो पाती।

    अपराधी आनंदपाल की लाश से अपनी राजनीति के मोहरे सीधे करने वाले लोगों को जान लेना चाहिए कि कोई अपराधी या आतंकी कभी अपनी जाति विशेष का भला नहीं सोचते। वो सिर्फ अपना स्वार्थ साथने के लिए समाज का उपयोग करते है। वर्तमान में आनंदपाल के नाम पर सभा और बैठकें आयोजित करने वाले लोग भी महज़ अपना चेहरा चमकाना चाहते हैं।

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