राजस्थान के लोग हमेशा से ही प्रतिभावान होते हैं। यहां के युवा आज हर क्षेत्र में राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा हैं जेल में बंद कैदी भी प्रतिभावान हो सकता हैं और अपनी अदभुत कला के जरिए देश भर में पहचान कायम कर सकते हैं। जीहां राजस्थान में एक नमूना ऐसा भी देखने में मिला हैं जहां कैदी जेल में बंद होने के बावजूद अपनी प्रतिभा से सबकों हैरान कर दिया हैं। जयपुर की सेंट्रल जेल के कैदी सलाखों के पीछे रहते हुए भी एक अलग पहचान बना रहे हैं। कभी टाट-पट्टी, दरिया और निवार बनाने वाले कैदा आज शहर भर में फेमस हो गये हैं। इन कैदियों द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट लोगों को पसंद आ रहे हैं। महिला कैदियों के बनाए डिजाइनर आउटफिट्स जहां हाथों हाथ बिक रहे हैं वहीं पुरुष कैदियों के हुनर की इतनी कद्र हो रही है कि उनका बनाया फर्नीचर आउट ऑफ स्टॉक रहने लगा है।
‘आशाएं द जेल शॉप’ से बदली कैदियों कि जिंदगी
दरअसल राजस्थान कारागार विभान ने लीक से हटकर काम किया हैं इस काम को जेल के बाहर अब पहचान मिलने लगी हैं। कैदियों के इस सपने को साकार करने में ‘द जेल शॉप आशाएं’ मददगार बनी। राजधानी जयपुर में गत दो महिनों में ही जयपुर-आगरा रोड़ पर आशाएं द जेल शॉप खोली गई लेकिन ये शॉप लोगों के बीच किसी मॉल या किसी बड़े स्टोर से ज्यादा जल्दी फेमस हुई। जेल शॉप के प्रोडक्ट लोगों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं इसका कारण हैं जेल के कैदियों की कड़ी मेहनत और हुनर। जेल शॉप से रेगुलर सप्लाई के बाद भी माल की कमी हो जाती हैं।
राजस्थान फेस्टिवल में दिखेगा कैदी डिजाइनर्स का जलवा
राजस्थान फेस्टिवल के तहत 29 मार्च को जयपुर में होने वाले हेरिटेज फैशन शो में जेल के कैदियों के तैयार आउटफिट्स को भी मॉडल्स प्रजेंट करेंगी। जेल प्रोडेक्ट्स को यह नई पहचान बांग्लादेशी फैशन डिजाइनर बीबी रसेल के जरिए मिलेगी। रसेल हाल ही अपनी जयपुर विजिट के दौरान जेल शॉप पहुंची थी और कैदी डिजाइनर्स से मुलाकात भी की थी। तभी रसेल ने अपने फैशन शो में इनके बनाए आउटफिट्स को रैम्प पर उतारने की बात कही थी।
जिंदगियों में रंग भरती ‘आशाएं’ द जेल शॉप
जयपुर की महिला जेल उपाधीक्षक मोनिका अग्रवाल के अनुसार उनके यहां कुल 150 महिला कैदी हैं। इनमें से 110 कैदी अपने-अपने हाथ के हुनर के दम पर अब नई पहचान बनाने में जुटी हैं। जेल शॉप उनकी इस बेरंग जिंदगी में नए रंग भर रही हैं। प्रोडक्ट की सेल से आमदनी जहां कैदियों का वेलफेयर फंड बढ़ा रही हैं वहीं कैदियों का मेहनताना भी 130 रुपए तक हो गया है। बता दें कि इससे पूर्व जेल में मेहनताना 100 रुपए से भी बहुत कम दिया जाता था।
जेल के भीतर है आशाओं की इंडस्ट्री
कैदियों को जेल में सजा काटने के दौरान ही कई क्षेत्रों में वॉकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि जब जेल से बाहर निकले तो वो आत्मनिर्भर बन सकें। इसके लिए जेल में दरियां बनाने, निवार बुनने, कपड़े डाई करने, लड़की का काम, सिलाई, होजरी गारमेंट, आचार, पेंटिंग आदि ट्रेनिंग भी दी जाती है। ट्रेनिंग के बाद सेंट्रल जेल की फेक्ट्री में उन्हें काम भी दिया जाता है जिसके बदले उन्हें तयशुदा मेहनताना भी मिलता है।