काश! पाकिस्तान के आतंक के खिलाफ कराया जाता भारत बंद।

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Bharat Bandh

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी की घोषणा के विरोध में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने 28 नवम्बर को भारत बंद का ऐलान किया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों को विरोध करने का अधिकार है। यह भी सही है कि नोटबंदी की वजह से आम व्यक्ति परेशान भी है। यदि नोटबंदी की घोषणा में कोई गलती होगी तो भाजपा सरकार को चुनाव में परिणाम भुगतने होंगे। आज देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान के आतंकवाद की है। सीमा पर हमारे सैनिक रोजाना शहीद हो रहे हैं, तो कश्मीर घाटी के हालात नियंत्रण से बाहर हैं। इस पर पाक आर्मी चीफ राहील शरीफ का बयान तो और भी डरावना है। 29 नवम्बर को रिटायर होने वाले राहील शरीफ ने कहा कि यदि पाकिस्तान ने सर्जिकल स्ट्राइक की तो भारत की आने वाली पीढिय़ां भूला नहीं सकेंगी।

पड़ौसी और दुश्मन देश के आर्मी चीफ का यह बयान भारत की एकता और अखंडता के मद्देनजर खास महत्त्व रखता है। सवाल उठता है कि क्या भारत के राजनीतिक दलों के नेताओं को पाक आर्मी चीफ के बयान का विरोध नहीं करना चाहिए? मैं यहां किसी एक राजनीतिक दल के नेता के नाम का उल्लेख नहीं कर रहा, लेकिन टीवी चैनलों पर नेताओं को जिस तरह से बयान प्रसारित हो रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कि नेताओं को देश की एकता और अखंडता की कोई चिंता नहीं है। पीएम मोदी की उपस्थित और अनुपस्थिति को लेकर ही पिछले 6 दिनों में संसद ठप पड़ी है। सीमा पर पाकिस्तान हमारे जवानों को शहीद कर रहा है और हमारे नेता संसद और संसद के बाहर नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं। जितनी ताकत नोटबंदी के विरोध में लगाई जा रही है, उसकी आधी ताकत यदि पाकिस्तान के आतंक के खिलाफ लगा दी जाए तो पाक आर्मी चीफ हमारे देश के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करें।
(एस.पी.मित्तल)

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