नोटबंदी के मुद्दों पर संसद में पीएम नरेन्द्र मोदी की गैर मौजूदगी को लेकर भले ही संसद न चल रही हो, लेकिन 24 नवंबर को राज्यसभा में मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनमोहन सिंह के भाषण को पूरी गंभीरता के साथ सुना। कई दिनों के हंगामें के बाद 24 नवंबर को पीएम मोदी राज्यसभा में उपस्थित हुए। चूंकि पूर्व पीएम को नोटंबदी पर बोलना था इसलिए मोदी ने प्रश्नकाल भी स्थगित करवा कर सबसे पहले पूर्व पीएम को बोलने का अवसर दिया। मनमोहन सिंह की भी इस बात के लिए प्रशंसा करनी पड़ेगी कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी पर कोई व्यक्तिगत हमला किए बगैर प्रभावी तरीके से अपनी बात को रखा। सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए सिंह ने कहा कि नोटबंदी की वजह से आम व्यक्ति परेशान है।
24 नवंबर को लोगों ने राज्यसभा की कार्यवाही का लाईव प्रसारण देखा। उन्होंने यह भी देखा होगा कि मनमोहन सिंह के बाद जब सपा के सांसद नरेश अग्रवाल ने बोलना शुरू किया तो उनका पूरा भाषण पीएम मोदी पर सीधे हमला करना था। अग्रवाल ने निर्धारित 10 मिनट के बजाय 20 मिनट बोला और मोदी की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सवाल उठता है कि जिस शालीनता और प्रभावी तरीके से डा. मनमोहन सिंह ने अपनी बात रखी, क्या उसी तरीके से विपक्ष के अन्य सांसद नहीं रख सकते हैं? मेरा ऐसा मानना है कि यदि मनमोहन सिंह की तरह सभी सदस्य बात रखे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों सदनों में पूरे समय उपस्थित रहेंगे, लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं का मकसद सरकार की नीतियों की आलोचना करना नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी को टारगेट करना है। यही वजह रही कि भोजनावकाश के बाद राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो पीएम मोदी नहीं आए। यह माना कि लोकतंत्र में विपक्ष को सत्ता पक्ष की आलोचना करने का अधिकार है। ऐसे में मोदी में भी आलोचना सुनने का माद्दा होना चाहिए।
(एस.पी.मित्तल)